उपन्यास १०३ गृह-स्वामी का स्वर सुनते ही समस्त युवती मण्डल हरीकर भीतर भाग गया। गृहिणी योली- "थती, चकचक स्या होती? सभी अपनी-अपनी शुभ चाहते हैं, गांड विधवा को कौन घर में घुसने देता है ?" "फौन धाई है?" "भगो. जयनारायण की लड़की!" गृह-स्वामी ने भौं सिकोड़कर कहा- "जयनारायण ने भाग खाली है, या पागल होगया है ? निकालो इसे यहाँ ले !" भगवती चुपचाप चल दी। चम्पा भी उल्टे पैरों लौट चली। गृहिणी ने चम्पा को बहुतेरा रोका, पर उसने एक न सुनी । घर श्राफर भगवती किचाइ बन्द कर पड़ गई। उसका हृदय कैसा हो रहा था, तथा उस पर कैसी बीती, सो हम में लिखने की शक्ति नहीं है । चम्पा ने बहुत दिन तक भगवती को मुँह दिखाने का साहस न किया। तेरहवाँ परिच्छेद ठीक दोपहरी मलमला रही थी। लूओं के तपते शोलों, हवा की सांय-साय श्रावाज़ और गाँव की गली के सलाटे ने समय को और भी भीपण बना दिया था। गाँववाले सब घर में पड़े
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