उपन्यास १०१ गृहिणी ने देखा-यांगन में यड़ी भीद लग रही है। उधर से सनी फी माँ चारही थी। उसे देखकर गृहिणी ने कहा-"धरी लक्ष्मी ! यह सब क्या है ?" लप्मी ने हाय मटकाकर कहा- "धूल योद्दीली ! सती सावित्री प्राई हैं, उनका नुम भी दर्शन कर लेनो-चरणोदक लेलो।" गृहिणी ने मुझलाफर कहा-"सीधी बात कह री ! कौन है ?" लक्ष्मी ने और पाल श्राफर कहा-"कहूँ क्या पत्थर ! भग्गो रानी थाई है, यह को देखने।" "कौन भग्गो ?" "वही जयनारायण की रांड बेटी!" गृहिणी वदपकर बोली-"सूट का यहाँ क्या काम ? शुम काम में उसे पुलाया किसने है ?" समस्त ढा-मण्डल बोल उठा- "मनी, अपने-अपने घर की सभी र मनाते हैं । यड़े-बड़े भाग से बहू मिलती है । उस निपूतो माँ को यह नहीं सूझी फि कैसे सन-सोमन राँढ धी भेज दें? सबरदार-जो बह गई ! ऐसी लुगाई की तो परछाई भी बुरी।" लक्ष्मी बोली-"तनफ उसकी सूरत सो देखो-उसे विधवा कौन कहे ? कैसे सिंगार करके भाई है-मानो यही गोनिहाई है।" श्रय गृहिणी मतमाफर उधर दौड़ी समस्त अनुचर-मण्डल भी दौड़ चला । गृहिणी को देखते ही भीद हट गई । सब देखने पास
पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१०३
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।