पृष्ठ:अमर अभिलाषा.djvu/१०

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ने अपने कृत्रिम व्यक्तित्व और पाखण्ड-पूर्ण बेश की भाड़ में शास्त्रीजी के साथ ऐसा अन्याय किया है, जो किसी भी मले आदमी की दृष्टि में सन्तव्य नहीं हो सकता! हमारे लिये यह बड़े शर्म की बात है ! शालीनी की दोनों विवादास्पद रचनामों की विकालत करने को न हमारी रुषि है, और न सामर्थ्य । परन्तु यह हमारा कितना भयंकर पतन है, कि एक-दो वस्तु के लोक-रुधि-विरुद्ध होने के कारण ही हम अपने साहित्य के एक महान कलाकार का तिरस्कार करें! निस व्यक्ति के हृदय में सामाजिक क्रान्ति की भाग धधक रही है, जो अपने सामने हिन्दू-राष्ट्र के एक सर्वथा नूतन- निर्माण का चित्र देखना है, जिसकी लेखनी में रक्त रोक देने- वाली तेज़ी मौजूद है-यह कितने दुर्भाग्य की बात है, कि पेशेवर आन्दोलकों की यात में आकर हम उसकी यात सक सुनने से इन्कार कर देते हैं ! X X X हमें अत्यन्त निकट से साबीनी का अध्ययन करने का अवसर मिला है। भारत के बहुत-से 'बढ़े भादमियों का दर्शन-शाम भी हमें मिला है। हम शालीनीकी भनेक वैयक्तिक और सैद्धान्तिक दुर्बलतामों से परिचित हैं। भनेक विषयों X