पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/८६

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प्रथम कोशस्थानः धातुनिर्देश [८९] इन्द्रिय के साथ निरन्तरत्व में उत्पन्न पाया जाता है और अन्योन्य । [निरन्तरत्व से क्या समझना चाहिए ? भदन्त के अनुसार, एक दूसरे के पास इस तरह होना जिसमें दोनों में अन्तर न हो; वैभाषिक के अनुसार, सांनिध्य, व्यवधान का अभाव] (३) प्रश्न है कि परमाणु स्पर्श करते हैं या नहीं। १. काश्मीर वैभाषिक (विभाषा, १३२, १) कहते हैं कि परमाणु स्पर्श नहीं करतेः (१) यदि परमाणु साकल्येन स्पर्श करते तो द्रव्य अर्थात् विभिन्न परमाणु मिश्रीभूत होते अर्थात् एकदेशीय होते, (२) यदि परमाणु एक देश में स्पर्श करते तो उनके अवयव' होते किन्तु परमाणु के अवयव नहीं होते। किन्तु यदि परमाणुओं में स्पर्श नहीं होता तो शब्द की अभिनिष्पत्ति कैसे होती है ? इसी कारण शब्द संभव है क्योंकि स्पर्श नहीं होताः यदि परमाणुओं का स्पर्श होता तो हाथ से अभ्याहत होने पर हाथ उसमें सक्त हो जाता; पत्थर से अभ्याहत होने पर पत्थर उसमें मिल जाता, जैसे लाक्षा लाक्षा में घुल-मिल जाती है। और शब्द की अभिनिष्पत्ति न होती। किन्तु यदि परमाणु स्पर्श नहीं करते तो संचित या परमाणुओं का संहात प्रत्याहत होने पर [९०] विशीर्ण क्यों नहीं होता? क्योंकि वायुधातु संघात को संचित करता है या उसका संधारण करता है । एक वायुधातु का कार्य प्रसर्पण है यथा लोकसंवर्तनी वायु; एक वायुधातु का कार्य संचित करना है यथा विवर्तन काल की वायु (३.९१, १००)।' १ संघभद्र (२३. ३, ४२ ए १): 'प्राप्त' का क्या अर्थ है ? जब विषय की उत्पत्ति इन्द्रिय के सानिध्य में होती है तब यह उसका ग्रहण करता है। इस प्रकार यदि द्रव्यों को समझना हो तो कह सकते हैं कि घ्राण, जिह्वा और काय प्राप्त विषय का ग्रहण करते हैं। जैसे कहते हैं कि चक्षु वर्म, शलाका और अन्य प्राप्त रूपों को नहीं देखता। वर्त्म चक्षु का स्पर्श नहीं करता किन्तु कहते हैं कि चक्षु उसको प्राप्त करता है। क्योंकि वर्म की उत्पत्ति चक्षु के सांनिध्य में होती है इसलिए कहते हैं कि यह इसको प्राप्त होता है। क्योंकि चक्षु.इस प्रकार संप्राप्त रूप को नहीं देखता इसलिए कहते हैं कि चक्षु अप्राप्त का, न कि प्राप्त का, ग्रहण फरता है । पुनः यह अतिदूरस्थ विषय का ग्रहण नहीं करता। इसी प्रकार यद्यपि प्राण प्राप्त विषय का ग्रहण करता है तथापि यह अति आसन्न का ग्रहण नहीं करता। के विशक, १२-१४ से तुलना कीजिए; बोधिचर्यावतार, पृ० ५०३, प्रशस्त- पाद, पृ०.४३ इत्यादि। १ बिभाषा, १३२, १ के अनुसार। क्या परमाणु अन्योन्य का स्पर्श करते हैं ?--वह स्पर्श नहीं करते। यदि वह स्पर्श करते तो वह सर्वात्मना स्पर्श करते या एकदेशेन स्पर्श करते। यदि वह सर्वात्मना स्पर्श करते तो द्रव्यों का मिश्रीभाव होता । यदि एक देश में स्पर्श होता तो परमाणु के सावयव होने का प्रसंग होता । किन्तु परमाणु के अवयव नहीं होते। [च्या० ८५.२] किस प्रकार संघात एक दूसरे को प्रत्याहत करते हुए एक दूसरे से वियुक्त नहीं होते? वह वियुक्त नहीं होते क्योंकि वायुधातु उनका संधारण करता है। किन्तु क्या वायुधातु वियुक्त नहीं करता?--कभी करता है, यथा कल्प के अन्त में । फभी वसुबन्धु