पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/८०

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प्रथम कोशस्यानः धातुनिर्देश ६५ ४१ ए-बी. चक्षु और धर्मधातु के ८ भाग दृष्टि हैं। २ धर्मधातु के यह आठ भाग क्या है ? सत्कायदृष्टि आदिक पाँच दृष्टि----इनका व्याख्यान अनुशय कोश स्थान में (५.७) होगा। [८१]लौकिकी सम्यग् दृष्टि अर्थात् मनोविज्ञानसंप्रयुक्त कुशल सानव प्रज्ञा (२.२४)-शैक्षी दृष्टि अर्थात् शैक्ष की अनास्त्रव दृष्टि---अशैक्षी दृष्टि अर्थात् अशैक्ष (६.५०) की अनास्रव दृष्टि। यह ८ धर्म जो धर्मधातु में संगृहीत हैं 'दृष्टि' हैं। दृष्टान्त : यथा रात्रि को और दिन को, समेघ आकाश और अमेघ आकाश में, रूप-दर्शन होता है उसी प्रकार (१) क्लिष्ट लौकिकी दृष्टि से-५ दृष्टियों से, (२) अक्लिप्ट लौकिकी दृष्टि या सम्यक् लौकिकी दृष्टि से; (३) शैक्षी दृष्टि से, (४) अशैक्षी दृष्टि से, धर्म-दर्शन होता है। लौकिकी सम्यग्दृष्टि केवल मनोविज्ञानसंप्रयुक्त प्रज्ञा क्यों समझी जाती है ? ४१ सी-डी. जो प्रज्ञा पंच विज्ञानकाय के साथ उत्पन्न होती है वह दृष्टि नहीं है क्योंकि वह उपनिध्यानपूर्वक संतोरण नहीं है। दृष्टि' तीरण, संतीरण है अर्थात् उपनिध्यान- पूर्वक निश्चयाकर्पण है। किन्तु पंचविज्ञानसहोत्पन्न प्रज्ञा का यह लक्षण नहीं है। अत: यह 'दृष्टि' नहीं है। अतएव मानसी प्रज्ञा भी चाहे क्लिष्ट हो या अविलष्ट, 'दृष्टि' नहीं है अर्थात् जब वह प्रत्यवेक्षणमात्र है (७.१) किन्तु यह कहा जायगा कि चक्षुरिन्द्रिय उपनिध्यानपूर्वक संतीरण से समन्वागत नहीं है। आप यह कैसे कहते हैं कि यह दृष्टि है ? यहाँ दृष्टि' का अर्थ रूपों का आलोचन है। चक्षुः पश्यति रूपाणि सभागं न तदाश्रितम् । विज्ञानं दृश्यते रूपं न किलान्तरितं यतः ॥४२॥ ४२. चक्षु रूप देखता है जब वह सभाग है; यह तदाश्रित विज्ञान नहीं है जो देखता है [८२] क्योंकि अन्तरित रूप नहीं देखा जाता। ऐसा वैभापिकों का मत है । २ चक्षुश्च धर्मधातोश्च प्रदेशो दृष्टिरष्टघा । [व्या० ७९.१९] विसुद्धिमग्ग, ५०९ में 'लोकिको सम्मादिलि' नहीं है : इसमें केवल यही सम्मादिवि है जो 'मग्गंग', वोज्नंग है (कोश, ६.२९०)। १ पंचविज्ञानसहजा धोर्न दृष्टिरतीरणात् ॥ छन्द के कारण 'प्रज्ञा' के स्थान में 'धो' (२.५७ डो)। २ उपनिध्यान, ८.१. चक्षुः पश्यति रूपाणि सभागं न तदाश्रितम् । विज्ञानं दृश्यते रूपं न फिलान्तरितम् यतः॥ [व्या० ८०.१५] न्यायविन्दुटीकाटिप्पणी, पृ० २६ देखिए; चोविचर्यावतारपंजिका, पृ० ५२०, सालिनी १० ४००, वारेन (विसुद्धिमाग), पृ० २९७, बुद्धिस्ट साइकालोजी प० ३५१, टिप्पणी; स्पेन्स हार्डी, मैनुएल ०४१९ १८.९ में यह वाद कि 'चल देखता है' महासांधिकों का बताया गया है । समय- भेद, वैसोलोफ़, पृ० २६२ से तुलना कौजिए। तीलीफ कोश के विवाद को पुनः सारंभ 4 अत्य- कायावत्यु,