पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/७०

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प्रथम कोशस्थानः घातुनिर्देश कितने धातु 'संचित' हैं ? [६७] ३५ डी. १० रूपी धातु संचित हैं। ५ ज्ञानेन्द्रिय और उनके आलम्बन परमाणु-संचय (संघात) (ii. २२) हैं। छिनत्ति छिद्यते चैव वाह्य धातुचतुष्टयम् । दह्यते तुलयत्येवं विवादो दग्धृतुल्ययोः ॥३६॥ १८ धातुओं में कितने छेदन करते हैं, कितने छिन्न होते हैं, कितने दाह करते हैं, कितने दग्ध होते हैं, कितने तोलते हैं, कितने तुलते हैं ? ३६. चार वाहय धातु छेदन करते हैं छिन्न होते हैं। इसी प्रकार दग्ध होते हैं और तीलते हैं। कौन दग्ध करता है और कौन तुलता है, इस विषय में विवाद है। रूप, रस, गन्ध और स्प्रष्टव्य छेदन करते हैं जब इनकी परशु आदि की संज्ञा होती है। यह छिन्न होते हैं जव इनकी दारु आदि की संज्ञा होती है। छेदसंज्ञक धर्म क्या वस्तु है ?--उस संघातलोत का विभक्तोत्पादन जिसका स्वभाव सम्बन्ध में उत्पन्न होना है। परशु दारुखंड-सन्तान का छेद करता है और उसको दो सन्तानों में विभक्त करता है जो पृथक् पृथक् वर्तमान होते हैं और वृद्धि को प्राप्त होते हैं । इन्द्रियों का छेद नहीं हो सकता। यथा निरवशेष अंग के छेद से कायेन्द्रिय, काय का द्वैधीकरण नहीं होता : छिन्न अर्थात् काय से अपगत अंग निरिन्द्रिय होते हैं। अच्छ होने के कारण गणिप्रभा की तरह इन्द्रिय छेद नहीं करते। यह दग्ध होते हैं और तौलते हैं यथा छेद करते हैं और छिन्न होते हैं। केवल चार बाहय धातु दग्ध होते हैं । यह तौलते हैं यथा जवें वह तुलाभूत हो तौलते हैं । इन्द्रिय नहीं तौलते क्योंकि वह अच्छ हैं यथा मणि-प्रभा। शब्द न छेद करता है, न छिन्न होता है, न दग्ध होता है, न तोलता है क्योंकि यह प्रवाह में वर्तमान नहीं होता। (उच्छेदित्व, अप्रवाहवर्तित्व व्या ६९.६])। कोन दग्ध करता है और कोन तुलता है, इस पर विवाद है। [६८] कुछ के अनुसार यही चार वाह्य धातु दाहक और तुल्य हैं । दूसरों के अनुसार केवल तेजोधातु दाह करता है जब वह अग्नि-ज्वाला में अपनी वृत्ति को उद्भूत करता है और केवल गुरुत्व तुल्य है । गुरुत्व एक प्रकार का उपादायरूप है (१.१० डी) : आतपादि लघु द्रव्यों फा मतुल्यत्व है यद्यपि वहाँ रूप की वृत्ति उद्भूत होती है। १ संचिता दश रूपिणः ॥ [च्या० ६८.३] विभाषा, ७६, ३ २ छिनत्ति छिद्यते चव घारं धातुचतुष्टयम् । [ध्या० ६८.९] दह्यते तुल्यत्येवं विवादो दग्वृतल्पयोः॥ [व्या० ६८.३४] विभाषा, १३३, ६.