पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/६३

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अभिधर्मकोश यद्यपि गन्ध-रस का वहाँ अभाव है तथापि रूपधातु में प्राणेन्द्रिय-जिह्वेन्द्रिय होते हैं। वास्तव में जो सत्त्य गन्ध से वितृष्ण है वह स्वसन्तान (आत्मभाव) में संगृहीत घ्राणेन्द्रिय के प्रति तृष्णा रखता है । पडायतन (६ ज्ञानेन्द्रिय) के प्रति तृष्णा का समुदाचार इन षडिन्द्रियों के आलम्वनवश नहीं, किन्तु आत्मभावमुखेन, होता है । अतः यद्यपि सत्त्व गन्ध-रस से वितृष्ण हो तथापि प्राणेन्द्रिय-जिह्वेन्द्रिय की उत्पत्ति सहेतुक है। पुरुषेन्द्रिय के लिए ऐसा नहीं है । इस इन्द्रिय के प्रति तृष्णा मैथुन-स्पर्श-मुखेन प्रवृत्त होती है । किन्तु रूपधातु में पुनरुपपन्न सत्त्व मैथुन-स्पर्श से वीतराग हैं। अतः पुरुषेन्द्रिय के प्रति तृष्णा से आहृत कर्म उन्होंने नहीं किया है । अतः रूपधातु में पुरुषेन्द्रिय नहीं होती। आरूप्याप्ता मनोधर्ममनोविज्ञानधातवः। सासवानासवा एते त्रयः शेषास्तु सालवाः ॥३१॥ [५८] ३१ ए-बी.आरूप्यधातु में मनोधातु, धर्मधातु, मनोविज्ञानधातु होते हैं.' आरूप्य में रूप से वीतराग सत्त्वों की उपपत्ति होती है। अत: आरूप्य में ५ इन्द्रिय और उनके आलम्बन, यह १० रूपी धातु और ५ विज्ञानघातु, जिनके आश्रय और आलम्बन रूपी धातु हैं, नहीं होते (८.३ सी)। कितने धातु सात्रव हैं ? कितने अनासव है ? ३१ सी-डी.यह तीन धातु सासव या अनास्त्रव हैं। जब यह मार्गसत्य या असंस्कृत में संगृहीत हैं तव यह अनाखव हैं; विपरीत अवस्था में सासव ३१ डी. शेष सास्रव है। 3 विभाषा, १४५, १२ : क्या रूप धातु में पुरुषेन्द्रिय और स्त्रीन्द्रिय होते हैं ? वहां न पुरुषे- न्द्रिय, न स्त्रीन्द्रिय होते हैं। प्रथम मत- क्योंकि इन इन्द्रियों के प्रहाण की इच्छा है इसलिए ध्यानों की भावना होती ह और योगी रूपधातु में पुनरुपपन्न होता है। यदि रूपावचर सरद इन इन्द्रियों से समन्वागत होते तो सत्व इस धातु में उपपन्न होना न चाहता। दूसरा मत इन इन्द्रियों की उत्पत्ति औदारिक आहार (३.३९) से होती है। सूत्र (३.९८ सी) वास्तव में कहता है कि प्रथसकाल्पिक मनुष्य इन इन्द्रियों से समन्वागत नहीं होते और सब को एक हो तो याकृति होती है। पश्चात् जब वह भूमि के रस का पान करते हैं तो दो इन्द्रियों उत्पन्न होती हैं, पुरुष-स्त्री के विशेष का प्रादुर्भाव होता है। औदारिक आहार अभाव में इन दो इन्द्रियों का अभाव होता है : तृतीय मतकापधातु में इन दो इन्द्रियों फा प्रयोजन है। रूपधातु में नहीं है । अतः रूपातु में इनका अभाव है .......। फरमावचर देवों के विषय में ३.७० देखिए। मारूप्पाप्ता मनोधर्ममनोविज्ञानधातवः । व्याख्या ६३. ११] २ सासवानालवा एते त्रयः। व्याख्या ६३.२१] गेपास्तु साखयाः॥ व्याख्या ६३.२३] के > 3