पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/५६

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प्रथम कोशस्थानः धातुनिर्देश ४१ जो अन्य स्कन्ध, आयतन और धातु अन्य सूत्रों में वर्णित हैं उनको भी, इस शास्त्र में व्यवस्थापित अपनें अपने स्वभाव के अनुसार, इन्हीं पांच स्कन्ध, १२ मायतन और १८ धातुओं में प्रविष्ट करना चाहिए । पांच अनास्रव स्कन्ध हैं--शील (४.१३), समाधि (६.६८), प्रज्ञा (२.२५), विमुक्ति (६.७६ सी), विमुक्तिज्ञानदर्शन : शीलस्कन्ध रूपस्कन्ध में संगृहीत है, शेष संस्कार- स्कन्ध में ( संयुत्त, १.९९, दीघ, ३. २७९, धर्मसंग्रह, २३) । पहले ८ कृत्स्नायतन (८.३५) अलोभ-स्वभाव के होने से धर्मायतन में संग्रहीत हैं। यदि सपरिवार इनका विचार करें तो इनका पंचस्कन्ध का स्वभाव है और यह मन-आयतन और धर्मा- यतन में संगृहीत होंगे । अभिभ्वायतन (८.३४) भी इसी प्रकार हैं । अन्तिम दो कृत्स्नायतन और चार आरूप्यायतन (८.२ सी) रूपवर्जित चतुःस्वान्ध-स्वभाव के हैं । यह मन-आयतन और धर्मायतन में संगृहीत हैं । ५ विमुक्त्यायतन (विमुक्ति के आयद्वार) प्रज्ञास्वभाव हैं। इसलिए यह धर्मायतन में संगृहीत हैं। यह सपरिवार शब्दायतन, मन-आयतन और धर्मायतन में संगृहीत है । दो आयतन शेष रहते हैं:3 १. असंझिसत्व, (२.४१ बी-डी) जो गन्ध-रस को वर्जित कर अन्य १० आयतनों में संगृहीत हैं । [४९] २. नैवसंज्ञानासंज्ञायतनोपग जो मन-आयतन और धर्मायतन में संगृहीत हैं। इसी प्रकार वहुधातुक में परिगणित ६२ धातुओं को उनके स्वभाव का विचार करके १८ धातुओं में यथायोग संगृहीत करना चाहिए।' पृथिवीधातु, अधातु, तेजो०, वायु, आकाश, विज्ञान० इन ६ धातुओं में से, जिनका उल्लेख मूत्र (बहुधातुकसूत्र) में है, अन्तिम दो का लक्षण नहीं कहा गया है । क्या यह समझना चाहिए कि आकाश ही, जो पहला असंस्कृत है, आकाशधातु है (१.५ सी)? क्या सर्व विज्ञान (१.१६) विज्ञानधातु है ? २ व्याख्या [५४.१] एक सूत्र उद्धृत करती है जिसका पाठ दोघ , ३.२४१ और अंगुत्तर, ३.२१ से कम विस्तृत है। विमुक्तयायतनम् = विमुक्तेरायद्वारम् । 3 रूपिणः सन्ति सस्वा असंशिनोऽप्रतिसंसिनः तद् यथा देवा असंजिसत्वाः । इदं प्रथममाय- तनम् । अरूपिणः सन्ति सत्वाः सर्वश आकिंचन्यायतनम् समतिक्रम्य नवसंज्ञानासंज्ञा- यतनं उपसम्पद्य विहरन्ति । तद्यथा देवा नवसंज्ञानासंज्ञायतनोपगाः । इदं द्वितीयं आयतनम् । [व्याख्या ५५.९] यह ६२ दृष्टियों के प्रतिपक्ष है (विभाषा, ७१, ६)--- बहुधातुक (मध्यम, ४८, १६, धर्मस्कन्ध, अध्याय २०) मज्झिम, ३.६१ (४१ धातु) के अति समीप है। असंग, सूत्रालंकार, ३.२ से तुलना कीजिए। १