पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/४०१

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तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश कल्पों को होती है : इन ६० का १॥ कल्प होता है क्योंकि महाकल्प के अर्थ को (४० अन्तरकल्प) एक कल्प मानते हैं। अपायगतियों में आय-प्रमाण क्या है ? हम क्रम से पहले ६ उष्ण नरक, अन्त्य दो उष्ण, नरक, तिर्यक्, प्रेत और शीतनरक का विचार करेंगे। कामदेवायुषा तुल्या अहोरात्रा यथाक्रमम् । संजीवादिषु षट्स्वायुस्तस्तेषां कामदेववत् ॥८॥ ५२. संजीवादि ६ नरकों में यहोरात्र कामदेवों के आयुःप्रमाण के तुल्य है। अहोरात्र के इस प्रमाण के साथ उनकी आयु वही है जो कामदेवों की है। संजीव, कालसूत्र, संघात, रौरव, महाररव, तपन-~~-इन ६ नरकों का अहोरात्र यवाक्रम चातुर्महाराजकायिक आदि कामदेवी की आयु के तुल्य है। {१७५] संजीव के अपायसव का आयुः प्रमाण चातुर्महाराजकायिकों के समान १२ मास के संवत्सर और ३० अहोरात्र के मास का ५०० वर्ष है। किन्तु इन अहोरात्रों में से प्रत्येक का प्रमाण चातुर्महाराजकायिक का सम्पूर्ण आयुः प्रमाण है। यही योग कालसूत्र के अपाय और नास्त्रिशों में है, तपन के अपाय और परनिर्मितवशवतियों में है। अध प्रतापनेवीचावन्तः कल्पं परं पुनः। कल्पं तिरश्चां प्रेतानां मासाहशतपंचकम् ॥८३॥ ८३ ए-वी. प्रतापन में अर्थ अन्तरकल्प की आयु है; अवीचि में एक अन्तरकल्प को आयु प्रतापन में आयु का प्रमाण अर्व अन्तर कल्प है; अवीचि में एक अन्तर कल्प है। २३ वी-डी. तिर्यक् की आयु अधिक से अधिक एक कल्प की है। प्रेनों की आयु ५०० वर्ष की है किन्तु उनके अहोरात्र का प्रमाण एक मास है।' जो तिर्यक् दीर्घतमकाल तक अवस्थान करते हैं वह एक अन्तरकल्प तक रहते हैं। यह नन्द, उपनन्द, अश्वतर आदि महानागराज हैं। भगवत् ने कहा है : “हे भिनुओं! ८ महानागराज हैं जो एक कल्प तक अवस्थान करते हैं जो घरणी का धारण करते हैं. ." ? १ कामदेवायुपा तुल्या अहोरात्रा यथाक्रमम् । संजीवादिषु पट्त्वायुस्तस्तेषां फामदेवयत् ।। । अर्थ प्रतापनेऽवीचावन्तःकल्पम् पालिग्रन्थ का (इतिवृत्तक, पृ. ११, अंगुत्तर आदि)४. ९९ सी. पृ. २०७, एन. २ में उल्लेख २ द ४ पुनः पुनः। कल्पं तिर्यश्चाम् प्रेताना मासाहशतपंचकम् ॥ व्याख्या में सूत्र उद्धृत है: अष्टाविमे भिक्षवो नागा महानागा कल्पस्या घरणिधरा: यप्रत्यु- द्वार्याः सुपणिनः पक्षिराजस्य देवासुरमपि संग्रामम् अनुभवन्तः। कत्तम । तद्यथा नन्दो नागराज: मुचिलिन्दो. मनल्वी. घृतराष्ट्रो. महाकालो, .एलापत्रो नागराजः।-लोकप्रज्ञाप्ति ३. १, में (मनस्विन् के स्थान में उपनन्दो. .अश्वतरो.....