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आचार्य वसुबन्धुकृत. अभिधर्मकोश भूमिका श्री आचार्य नरेन्द्रदेव' १९४२ के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय अहमदनगर के किले में नजरबन्द रहे थे। वहाँ रहते हुए उन्होंने वसुवन्धु के अभिधर्मकोश नामक ग्रन्थ का फ्रेंच से भापानुवाद किया। अभिधर्मकोश में आठ कोशस्थान या अध्याय हैं जिनमें से तीन यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं। शेष पांच कोशस्थानों का अनुवाद भी आचार्य जी समाप्त कर गये हैं। आशा है वह भी यथासमय प्रकाशित होगा। आचार्य जी ने अपने दूसरे ग्रन्य वौद्ध-धर्म-दर्शन में वसुबन्धु और उनके ग्रन्थों के विषय में जो लिखा है वह उन्हीं के शब्दों में यहाँ उद्धृत करने योग्य है- "असंग तीन भाई थे। असंग ही सबसे बड़े थे । इनका जन्म पुरुषपुर (पेशावर) में ब्राह्मणकुल में हुआ था। इनका गोत्र कौशिक था। इनसे छोटे वसुवन्धु थे। बौद्धसाहित्य में उनका ऊँचा स्थान है। आरम्भ में दोनों भाई सर्वास्तिवाद के अनुयायी थे । अभिधर्मकोश के देखने से मालूम होता है कि वसुबन्धुः स्वतंत्र विचारक थे। किन्तु उनका झुकाव सौत्रान्तिक मतवाद की ओर था । पीछे से असंग ने महायान-धर्म स्वीकार कर लिया और उनकी प्रेरणा से वसुबन्धु भी महायान के माननेवाले हो गये । ताकाकूसू के अनुसार वसुवन्धु का काल ४२० ई० और ५०० ई० के बीच है। वोगिहारा वसुबन्धु. का. समय ३९० ई० और ४७० ई० के बीच तथा असंग का समय ३७५ ई० और ४५० ई० के बीच निर्धारित करते हैं। सिलवाँ लेवी के अनुसार असंग का काल ५वीं शताब्दी का पूर्वार्ध भाग है; किन्तु एन०.पेरी ने यह सिद्ध करने की चेष्टा की है कि वसुबन्धु का जन्म ३५० ई० के लगभग हुआ। इससे विन्तरनित्स दोनो भाइयों का समय चौथी शताब्दी मानते हैं। परमार्थ ने वसुबन्धु की जीवनी लिखी थी। परमार्थ का समय ४९९-५६९ ई० है । ताकाकूसू ने चीनी से इसका अनुवाद किया है।" तारानाथ के इतिहास में भी वसुबन्धु की जीवनी मिलती है, किन्तु यह प्रामाणिक नहीं है। वसुवन्यु का सबसे प्रसिद्ध अन्य अभिधर्मकोश है। इसके चीनी और तिब्बती अनुवाद उपलब्ध हैं। लुई द ला वाले पूर्स' ने चीनी से फ्रेंच में अनुवाद १. थुङ्माओ;, भागः ५३. १९:०,४६, १०, २६९-२९६; BEFEO, भाग ४, १९०४, पृ० ४०-४७१ २. बौद्धसाहित्य और दर्शन-के अतिःप्रसिद्ध बेल्जिअन विद्वान्-~-Louis de la Vallce Poussin.