पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३८१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

तृतीय कोशस्थान : लोकनिर्देश इसके परे, किन्तु गन्धमादन के इसी ओर अनवतप्त सरोवर है जहाँ से चार बड़ी नदियाँ गंगा, सिन्धु, वक्षु और सीता निकलती हैं। यह सरोवर जो ५० योजन चौज़ [१४८] और गम्भीर है अष्टांगोपेत जल से व्याप्त है। केवल वेही मनुष्य वहाँ जा सकते हैं जो ऋद्धियों से समन्वागत है।' इस सरोवर के निकट जम्बु वृक्ष है। हमारे द्वीप का नाम जम्बु द्वीप' या तो जम्बु-वृक्ष पर है या जम्बु वृक्ष के फल पर है जिसे भी जम्बु कहते हैं। नरक कहाँ हैं और उनके परिणाम क्या है ? अवः सहस्रविशत्या तन्मात्रोऽवीचिरस्य हि। तदूर्व सप्त नरकाः सर्वेऽष्टौ षोडशोत्सदाः ॥५॥ वाटर्स१.२९३ जे ए एस. विभाषा, ५,६-ज्ञान प्रस्थान कहता है कि जम्बुद्वीप में ५ बड़ी नदियाँ हैं: गंगा, यमुना, सरयू (सरभू) अचिरवती, मही, (यह पालि पिटक की सूची है)। जब भदन्त कात्यायनी-पुत्र ने इस शास्त्र को व्यवस्थापित किया तब वह पूर्व में थे। यही कारण है कि उदाहरण के लिये उन्होंने उन नदियों का उल्लेख किया जिनसे पूर्व के लोग परिचित थे। किन्तु वास्तव में जम्बुद्वीप में चार बड़ी नदियाँ है जिनमें से प्रत्येक की चार उपनदियाँ है। (इस वचन में चार महानदी और १६ क्षुद्रनदियों का उल्लेख है। इसके शेष भाग का अनुवाद और उसको टोका एस लेवी, रामायण का इतिहास पृ० १५०-१५२ में हैं] पालि साहित्य और मिलिन्द की नदियों पर रोज डेविडस-मिलिंद, १ पृ० ११.४ और दमिएवील, मिलिन्द २३० (वो ई एफ ई ओ १९२४) । वक्षु या वंक्षु और बौद्ध तथा ब्राह्मण ग्रन्थों के चक्षु और सुचक्षु पर' ० लेवी, वही, महा- व्युत्पत्ति, १६७, ८०, अइटेल १९४, हापकिन्स, सैक्रेड रिवर्स अव इंडिया २१४ १९१४, २.४०९; स्मिय २६२-'वर्ष अक्सस है यह रेमूला ने सिद्ध किया है। सीता पर लेबी, वही पृ. १३९ ( = तारोम), मिनयेव, पाली ग्रामर पृ० ९ में प्लिनी ३१.२ से सीत; पर टीसिस का उद्धरण है यारकन्द को नदी या सिरिकोल) "सीता के उत्तर शास्त्र चम्पक देश की भाषा में, कपियों के देश की भाषा में, सुवर्ण देश की की भाषा में उपनिबद्ध है"। (मेलाज एशियाटिक २० १७७) । परमार्थ में यहाँ दो पंक्तियाँ अधिक हैं: इस सरोवर के दक्षिण तट पर २५ योजन ऊंचा एक पर्वत है। उत्तर तट पर १५ योजन ऊँचा एक पर्वत है। दोनों में नाना प्रकार के धातु है। गन्धमादन पर्वत के उत्तर शिखर पर नन्द नाम की एक गुहा है, यह सप्त रत्नों से विभूषित है। इसको लम्बाई और चौड़ाई ५० योजन है। यह गजराज का निवासस्थान है। इसके परे ६ राज्य, ७ वन, ७ नदी हैं। सातवी नदी के परे अर्धचन्द्राकार २ वन हैं। इन चनों के उत्तर १०० योजन ऊँचा जम्बु बृक्ष है . . कर्न मैनुअल, ग्रन्थ सूवी मे चणित ५८; एल० फीयर, भारतीय नरक ज ए एस, १८९२. १८९३, वी० सी० ला हेवेन एंड हेल इन बुद्धिस्ट पर्सपेक्टिव, कलकत्ता १९२५ पाली स्रोत, गोगली सीलोन बुद्धिज्म १९०८, भाग २, कारण्डव्यह, संमा० सत्यना साम अमी कलकत्ता १८७३; सुहल्लेख, वे जेल जे पी टी एस १८८६; सद्धर्मस्मृत्युपस्यान, उद्धरण में शिक्षासमुच्चय और एस० लेवी, रामायण में जे प्रिजलुस्को ने अपने लेखष्टद अशोक प्रत्य १९२४ में बौद्ध मरक के इतिहास देने का पहला प्रयास किया है। २