पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/३४४

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अभिधर्मकोश चक्षुःसंस्पर्श, श्रोत्रसंस्पर्श आदि के आश्रय सप्रतिष (१.२९ बी) इन्द्रिय हैं। अत: [९९] इनको प्रतिघसंस्पर्श कहते हैं। यह नाम आश्रयप्रभावित है।' छठे मनःसंस्पर्श को अधिवचनसंस्पर्श कहते हैं। अधिवचन शब्द का क्या अर्थ है ? अधिवचन नाम है। किन्तु नाम मनोविज्ञानसंप्रयुक्त स्पर्श का अधिक (वाहुल्येन) आलम्बन है। वास्तव में यह कहा है कि "चक्षुर्विज्ञान से वह नील को जानता है किन्तु वह यह नहीं जानता कि यह नील है। मनोविज्ञान से वह नील को जानता है और यह भी जानता है कि 'यह नील है।४ अतः मनःसंस्पर्श को अधिवचनसंस्पर्श कहते हैं। यह नाम आलम्बन-प्रभावित है। एक दूसरे मत के अनुसार इसका अवधारण करते हैं कि वचन का अवधारण कर (अधि- कृत्य वचनम् = वचनमवधार्य) (रूपादि) अर्थों में केवल मनोविज्ञान की प्रवृत्ति होती है। अतः मनोविज्ञान अधिवचन है। उससे संप्रयुक्त स्पर्श इसलिये अधिवचनसंस्पर्श कहलाता है। यह द्वितीय संस्पर्श संप्रयोगप्रभावित कहलाता है। छठा स्पर्श तीन प्रकार का है : [१००] विद्याऽविद्यतरस्पर्शा अमलक्लिष्टशेषिताः व्यापादानुनयस्पशी सुखवेद्यावयस्त्रयः ॥३१॥ ३१ ए-बी. विद्या, अविद्या और इतर स्पर्श : यह यथाक्रम अमल, क्लिष्ट, इतर हैं।' ३ ४ २ 'प्रतिष संस्पर्श' इसलिये कहलाता है क्योंकि उसका आश्रय (इन्द्रिय) सप्रतिध है (विभाषा, ' १४९, ३ का प्रथम मत जिसका नैञ्जियो १२८७ और वसुबन्धु अनुसरण करते है)। क्योंकि उसके आश्रय और आलम्बन सप्रतिघ हैं (विभाषा का दूसरा मत जिसका नैञ्जियों १२८८ और संघभद्र अनुसरण करते हैं)। २ अधिवचनसंफस्स, दोघ, २.६२ (वारेन, २०६, डायलाग्ज, २. ५९ और- थियरी आव वेल्व काजेज,पृ० १९. दि० २ में अनुवाद का प्रयत्न), विभंग, ६--'अधिवचन', धम्मसंगणि, भाष्य : अधिवचनमुच्यते नाम!--व्याख्या : अध्युच्यतेऽनेनेत्यधिवचनम् । बाङ नाम्नि प्रवर्तते नामार्य द्योतयतीति अधिवचनं नाम। [च्या ३०५.१९] चक्षुर्विज्ञानेन नीलं विजानाति नो तु नीलमिति। मनोविज्ञानेन नीलं नीलमिति च विजानाति। व्या ३०५.२२] [पाठभेद-चक्षुर्विज्ञानसमंगो........मनोविज्ञानसमंगी.......] इस वचन पर जो निस्सन्देह अभिधर्म (न्यायबिन्दु-पूर्वपक्षसंक्षेप, तिब्बती विनय, १११, फोलियो १०८ बी) से उद्धृत है कोश, १.१४ सो, मध्यमकवृत्ति, पृ०.७४, टि० देखिये। ५ फा-शेंग का यह मत अभिधर्महृदय (६, १८) में है, नैजियो १२८८ --धर्मकीति, धर्मजिन (नैजियों), धर्मोत्तर (ताकाकुसु) ने फा-शेंग का अनुवाद किया है : पेरी, डेट आव वसुबन्ध, २५ में ध-म-स्-लि-ति है। शुआन-चाङ्ग का अनुवाद : जिसका वचन अधिपति [प्रत्यय] है । । विद्याविद्येतरस्पर्शा अमलक्लिष्टशेषिताः । व्या ३०६:२] विभाषा, १४९, २-दो स्पर्श--सालक, अनास्लव तीन स्पर्श--कुशल, अकुशल, अव्या- कुत; चार स्पर्श-धातुक, अधातुपर्यापन इत्यादि। नीवरण और उसके प्रतिपक्ष (फ्लेश और उसका प्रतिपक्ष) को दृष्टि से : अविद्यास्पर्श और विद्यास्पर्श ; स्पर्शस्वभाव को दृष्टिसेः नैवविद्या-नाविद्यास्पर्श ; सुख और दुःख को दृष्टि से : व्यापादस्पर्श और अनः