पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२७५

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तृतीय कोशस्थान:लोकनिर्देश २६५ विरक्त है वह सब लोकधातुओं के कामधातुओं से विरक्त है। अन्य दो घातुओं के लिये भी यही योजना होनी चाहिये। जब कोई प्रथम ध्यान का निश्रय लेकर अभिज्ञा का उत्पाद करता है तब जिस निर्माण-सत्त्व का वह निर्माण करता है वह उस लोकधातु के ब्रह्मलोक में ही होता है जहाँ उसका निर्माता उपपन्न हुआ है, अन्य लोकधातुओं में नहीं (७.५० वी . पृ. ११६) । नरकादिस्वनामोक्ता गतयः पञ्च तेषु ताः । अक्लिष्टाऽव्याकृता एव सत्त्वाख्या नान्तराभवः ॥४॥ ४ ए-बी . इन धातुओं में पांच गतियाँ होती हैं, जिनका नामोल्लेख हो चुका है।' [१२] पाँच गति : नारकीय सत्त्व, तिर्यक्, प्रेत, मनुष्य और देव । कामघातु में पहली चार गति और देवगति का प्रदेश; अन्य दो धातुओं में देवगति का प्रदेश । गाथा कहती हैं कि "धातुओं में पांच गतियाँ हैं।" इसलिये क्या धातुओं का कोई प्रदेश है जो गतियों के अन्तर्गत नहीं है ? हाँ । घातुओं के अन्तर्गत कुशल, अकुशल, भाजन-लोक और अन्तराभव हैं। किन्तु पाँच गतियाँ : २ नरकादिस्वनामोक्ता गतयः पञ्च तेषु गति ५ हैं या ६? कथावत्यु, ८.१--मझिम, १.७३ (पञ्च खो पनिमा सारिपुत्त गतयो.....) के होते हुए भी अन्वक और उत्तरापथक का मत है कि असुर एक पृथक् गति ह । किन्तु काल- फजकों की गणना प्रेतों में है और वेपचित्ति का गण (संयुत्त, १.२२१, डायालाग्स, २.२८९, अदरन, ७४९ ) वेवों में अन्तर्भूत है। ऑग-रीज डेबिट्स के पाठ और टिप्पणियों के अनुसार] मज्झिम, १.७३ के अतिरिक्त हम वीघ, ३.२३४, अंगुत्तर, ४.४५९, संयुत्त, ५.४७४ का उल्लेख कर सकते है। किन्तु अपाय चार हैं : नरक, तिर्यक, प्रेत, असुर ( देखिये रोज-रेविड्स-स्टीड)- यह शिक्षासमुच्चय, १४७ को 'अक्षणगति', दीघ, ३.२६४ के 'अक्खन', पैतवत्थु फे 'दुग्गति हैं। अमिताभ के सुखावतो व्यूह में इनका अभाव है (सुखावती, ११) । सद्धर्मपुण्डरीफ में कभी ६ गतियों का (वर्नूफ, ३०९), कभी ५ गतियों का (बफ़, ३७७) उल्लेख मिलता है। नागार्जुन के सुहल्लेख में ५ गतियों का उल्लेख है। इसी प्रकार बोध-गया के लेख में भी है । (जिशीमा, जे० ए० एस० ने १८८८,२.४२३; शावनेज, आर० एच० • भार १८९६, २) किन्तु धर्मसंग्रह, ५७ और उसमें उद्दिष्ट अन्य ग्रन्थों में ६ गति हैं। किओकूगा की टिप्पणियाँ-(१) असुर : १. प्रेतों में अन्तर्भूत (विभाषा और नजियो , १२८७); २.गतियों के अन्तर्गत नहीं (बुद्धभूमि आदि); ३. पष्ठ गति (महासांधिकादि); ४.प्रेत-तियक्-के अन्तर्गत (सद्धर्मस्मृत्युपस्थानसूत्र); ५ प्रेत-तिर्यक् देव के अन्तर्गत (सगायसूत्र)-(२) सूत्र कहता है कि पांच गति हैं। कैसे कोई कह सकता है कि गति ६ हैं ? बुद्ध के निर्वाण से पाँच शताब्दियां हुई; बहु निकाय है; निकायों का ऐकलत्य नहीं है। कुछ ५ गतियों के पक्ष में है, अन्य ६ के प्रथम कहते हैं कि सूत्र में ५ गतियां उक्त हैं, दूसरे कहते हैं कि ६ । --(३) महायान के अवतंसक का कहना है कि ६ गति हैं। संभिन्न हृदय,