पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२५२

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द्वितीय कोशस्थान प्रत्यय २३९ निश्रयहेतु, क्योंकि भौतिक उत्पन्न होकर भूत का अनुविधान करते हैं यथा भिक्षु आचार्य और उपाध्याय का निश्रय लेता है । प्रतिष्ठाहेतु, क्योंकि भौतिक भूतों का आधार लेते हैं, यथा चित्र भित्ति का आधार लेता है । उपस्तम्भहेतु, क्योंकि भूत भौतिकों के अनुच्छेद में हेतु हैं। उपवृहणहेतु, क्योंकि भूत भौतिकों की वृद्धि में हेतु हैं । अर्थात् भूत भौतिकों के जन्महेतु, विकारहेतु, आधारहेतु, स्थितिहेतु, वृद्धिहेतु हैं। ६५ सी. भौतिक भौतिकों के तीन प्रकार से हेतु हैं।' सहभू, सभाग और विपाकहेतु। हम कारणहेतु का उल्लेख नहीं करते क्योंकि सब धर्म सब धर्म के कारणहेतु हैं। १. २.५१ ए में वर्णित प्रकार (दो संवर) के चित्तानुपरिवर्ति काय-वाक्कर्म जो भौतिक हैं सहभूहेतु हैं। ६३१५] २. सव उत्पन्न भौतिक सभाग भौतिकों के सभागहेतु हैं । ३. काय-वाक् कर्म विपाकहेतु हैं : चक्षु कर्मविपाकादि से उत्पादित होता है । ६५ डी. तथा भूतों का हेतु एक प्रकार से । काय-वाक् कर्म भूतों का उत्पाद विपाकफल के रूप में करते हैं; अतः वह विपाकहेतु हैं। हमने देखा है कि पूर्व चित्त और चैत्त अपर चित्त और चैत्त के समनन्तरप्रत्यय हैं। किन्तु हमने इसका निर्देश नहीं किया है कि कितने प्रकार के चित्त प्रत्येक चित्त-प्रकार के अनन्तर उत्पन्न हो सकते हैं । नियम व्यवस्थापित करने के पूर्व चित्त का वर्गीकरण आवश्यक है । सर्व प्रथम १२ प्रकार बताते हैं । कुशलाकुशलं कामे निवृतानिवृतं मनः । रूपारूप्येष्वकुशलादन्यत्रानास्त्र द्विधा ॥६६॥ ६६. कामवातु का कुशल, अकुशल, निवृताव्याकृत, अनिवृताव्याकृत चित्त । रूपधातु और आरूप्यघातु का कुशल, निवृताव्याकृत, अनिवृताव्याकृत चित्त । दो अनास्रव चित्त । ५ १ २ ऊपर ५९ डी. पर देखिये--प्रतिष्ठाफल [त्रिधा भौतिकमन्योन्यम्] भूतानाम्] एकचैव तत् ॥ [च्या २४०. १३] कुशलाकुशलं कामे निवृतानिवृतं मनः । रुपारूप्येष्वकुशलादन्यत्र [उ मनास्त्र] । विज्ञानकाय, ६ (फोलियो ५४ बो) और धर्मत्रात के ग्रन्य ने, नैजियो , १२८५, फोलियो ९५ वी और फोलियो १०.२९-३४ द्वादश चित्त के वाद का निर्देश है : "कामघातु में चार, रूपवातु और आरूप्यधातु में तीन-तीन तथा शैक्ष और अक्ष । इनको उत्पत्ति का क्रम बताते हैं । कामधातु में कुशल ९ का उत्पाद करता है और ८ से उत्पन्न होता है. ।" इसके