पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२३२

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द्वितीय कोनास्थान : फल अर्थात् यथा अत्रि का निर्वाण अत्रि का अत्ययमान है और द्रव्यलत नहीं है उसी प्रकार भग- बन के वित्त का विमोल है । १०. सांत्रान्तिक पुनः अनिवर्म का प्रमाण देते हैं जहाँ यह पति है : “अवस्तुक धर्म क्या है ?--अत।" -'लवस्तुकं गब्द का अर्थ 'मत्रव्य, निःस्वभाव है। वैभापिक इस मर्य को नहीं स्वीकार करते । वास्तव में वस्तु शब्द का प्रयोग पाँव भिन्न अर्थों में होता है : १. स्वभाववस्तु, यया "इन बस्तु (बशुभा, ६.११) के प्रतिलब होने से इस वस्तु का समन्दागन होता है" (मानप्रत्यान, २०, ३, विभाषा, १९७, ८); २. आलम्बन- वस्तु, यथा “सर्व वर्म भिन्न जान ययावस्तु नेय है" (प्रकरण, ३१ वी ९); ३. संयोजनीय- वस्तु, यथा 'जो रानबन्धन से किसी बातुने प्रतिसंयुक्त है क्या वह द्वेषकन्यन ने इसी वस्तु मे प्रतिसंयुक्त है ? (विभापा, ५८,२); ४. हेतु के अर्थ में व, यथा 'सबस्तुक धर्म कौन हैं ? [२८७] ---संस्कृत वर्म"(प्रकरण, ३६ बो); (५) परिग्रहवस्तु, यथा “क्षेत्रवस्तु, गृहयस्तु, आपणवस्तु, वनबस्तु : पग्नि का प्रहाण अपरिग्रह है।" (विनापा, ५६, २) वैभाषिक सनाप्त करते है : इस संदर्भ में 'वस्तु हेतु के अर्थ में है। 'अवस्तु का अर्थ 'अहेतुक है। यचपि बसंस्कृत व्य है तथापि नित्य निष्क्रिय होने से कोई हेतु नहीं है जो इनका उत्पाद करता है और कोई फल नहीं है जिसका यह उलाद करते हैं। विपाककलनन्त्यस्य पूर्वस्याविरतं फलम् । सभागसर्वत्रगयोनिप्यन्दः पौरुष द्वयोः ॥५६॥ यह दकाना आवश्यक है कि प्रत्येक प्रकार के हेतु ने किन प्रकार का फल निर्वन बीता है। ५६ए. किाक अन्त्य हेतु का फल है।' विभाषा, ३१, १०--प्रकरण, ३३ बी ३ में एक लक्षण है जिसका हम उद्धार कर सकते है। भवस्तुका अप्रत्यया धर्नाः कत्तमे ? बसंस्कृता धर्माः (१.७ देखिये) । यह सूत्र १.७ की यात्रा में उद्धृत है। १.७ को धारया में (पेड़ोत्राड संस्करण पृ. २२) यह सब अयं दिये है। विपाकः फलमन्यत्त्य । जापानी संपादक विभाषा, १२१, ३ उद्धृत करते हैं। फल पंवविध हं: १. निष्यन्दकल, २. विपाकफल, ३. बियोगकल, ४. पुन्यकारक, ५. अधिपतिफल। ए. निप्यन्दफल : नुशलोत्पन कुशल, अकुशलोत्पन्न लवाल, अनाजोलन मान । बी. विपाकफल: विपाक अकुशल या राज तात्रय धर्मों से उत्पादित होना है। हेतु कुराल या अकुशल है किन्तु फल सदा अव्याहत है । क्योंकि यह फल स्वहेतु से भिन्न है और 'पाक' है इसलिये इसे 'विपार (क्सित पास) कहते हैं। सो. नियोगफल । सानन्तयं नार्ग क्लेश का उच्छेद करते है। उनका दिलंयोगः श्रीर पुरखकारफल प्लेग मुच्छेद है। उनका निप्यन्दन और पुरुषक रफल बित्तिनाग उनका निप्यन्दफन सर्व सम या विशिष्ट स्वजातीय अपर मार्ग है। अभियावतारमास्त्र (नजियो, १२९१), २.१४ नो देटिये जहां फलों को नंगाओं का घाल्यान है। ? 1 .