पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२१

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६ अभिधर्मकोश [४] यह पारमार्थिक अभिधर्म है । २ वी. अमला प्रज्ञा की प्राप्ति के लिए जिस प्रज्ञा और जिस शास्त्र की आवश्यकत्ता है वह भी अभिधर्म है। व्यवहार में अभिधर्म शब्द से वह प्रज्ञा भी ज्ञापित होती है जिससे पारमार्थिक अभिधर्म का लाभ होता है: सातवा प्रज्ञा जो उपपत्तिप्रतिलम्भिका (सहजा.) या प्रयोगजा अर्थात् श्रुत- मयी, चिन्तामयी, भावनामयी प्रज्ञा (२.७१ सी) है अपने अनुचर के साथ सांकेतिक अभिधर्म कहलाती है। शास्त्र भी पारम्पर्येण अभिधर्म कहलाता है क्योंकि शास्त्र भी अनास्रव-प्रज्ञा का प्रापक है। इसलिए यह पारमार्थिक अभिधर्म में हेतु है। धर्म वह है “जो स्वलक्षण धारण (मध्यमक बृत्ति, ४५७; सिद्धि ४,५६८ देखिए)करता अभिधर्म को 'अभि-धर्म' इसलिए कहते हैं, क्योंकि यह उस धर्म के अभिमुख है जो परम ज्ञान का अर्थ है अथवा यह सब धर्मों में अन या परमार्थ निर्वाण के अभिमुख है अथवा यह धर्मों के स्वलक्षण और सामान्य लक्षणों के अभिमुख है। इस शास्त्र को अभिधर्मकोश क्यों कहते हैं ? २ सी-डी. क्योंकि अभिधर्म का इसमें अर्थतः अनुप्रवेश है अथवा [५] अभिधर्म इसका आश्रय है इसलिए इस शास्त्र को अभिधर्मकोश कहते हैं ।' जिस शास्त्र की संज्ञा अभिधर्म है अर्थात् अभिधर्मपिटक, वह इस शास्त्र में अर्थतः यथाप्रधान अन्तर्भूत है। इसलिए यह अभिधर्मकोश है, अभिधर्म का कोशस्थानीय है । अथवा वह अभिधर्ग इस शास्त्र का आश्रयभूत है। इसलिए हम कह सकते हैं कि यह शास्त्र अभिधर्म से निराकृष्ट है यथा खड्ग कोश से निराकृष्ट होता है । अतः इस शास्त्र को अभिधर्मकोश कहते हैं अर्थात् वह शास्त्र जिसका कोश अभिधर्म है। व्याख्या [८.२७]--परमार्थ एव पारमार्थिकः । परमाय वा भवः पारमायिकः। परमार्थन या दीव्यति चरतीति पारमाथिकः। २ तत्प्राप्तये यापि च यच्च शास्त्रम् । व्याख्या ८.३०, ९.६] 3 सांकेतिक, सांव्यवहारिक अभिधर्म । [व्याख्या ८.२९] शास्त्र अर्थात् (१) अभिधर्म शास्त्र, अभिधर्मपिटक। व्याख्या ९.७] इस अर्थ में कुछ का कहना है कि शास्त्र के साथ 'सानुचर' का अनुवर्तन नहीं करना चाहिए स्पोंकि ग्रंथ का परियार नहीं होता। कुछ का मत है कि लक्षण (२.४५ सी-डी) अनुचर हैं। (२) भयका ज्ञानप्रस्थान जो अभिधर्म का शरीर है और उसके पादभूत (और 'अतु- चर) ६ प्रत्य-प्रकरणपाद, विज्ञानकाय, धर्मकाय, प्रज्ञाप्तिशास्त्र, धातुकाय और संगीति- (वञ्फ, भूमिका, प.४४८) १ तस्यायतोऽस्मिन् यिाख्या १०.३] [सम्] अनुप्रवेशात् । [सो च] साश्रयो [ऽस्पेत्य] अभिधर्मकोशः।। पर्याय।