पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२०५

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द्वितीय कोशस्थान : हेतु [२४६] ५० ए. सव धर्म स्वतः से अन्य सब के कारणहेतु है। कोई धर्म अपना कारणहेतु नहीं है । इस अपवाद के साथ सव धर्म सर्व संस्कृत धर्मों के कारणहेतु हैं क्योंकि उत्पत्तिमान् धर्मों के उत्पाद के प्रति प्रत्येक धर्म का अविघ्नभाव से अवस्थान होता है । इस लक्षण से यह सिद्ध होता है कि सहभूहेतु आदि धर्म कारणहेतु भी हैं। अन्य हेतु कारण- हेतु के अन्तर्गत हैं। जिस हेतु का कोई विशेष नाम नहीं है, जो बिना किसी विशेषण के कारण- मात्र है वह कारणहेतु है : एक विशेष नाम के योग से यह वह नाम पाता है जो सब हेतुओं के उप- युक्त है । रूपायतन नाम से तुलना कीजिये (१.२४) । कारणहेतु के संबन्ध में निम्नोल्लिखित सूचनाएं हैं:- १. मूढ़ पुद्गल में आत्रच उत्पन्न होते हैं। एक बार दृष्टसत्य होने से उनकी [२४७] उत्पत्ति नहीं होती । यथा जब सूर्य की प्रभा होती है तव ज्योतियों का दर्शन नहीं होता। अतः आर्यसत्यों का ज्ञान और सूर्य यथाक्रम आस्रव की उत्पत्ति में और ज्योति दर्शन में विघ्नकारी हैं। अतः यह कहना यथार्थ नहीं है कि स्वभाववर्य सब धर्म संस्कृत के कारणहेतु हैं क्योंकि वह उत्पत्ति में विघ्न नहीं करते । हम जानते हैं कि सत्यज्ञान और सूर्यप्रभा उत्पद्यमान धर्म की उत्पत्ति में अर्थात् उस धर्म की उत्पत्ति में विघ्नभावेन अवस्थित नहीं है जो प्रत्यय के समग्र होते अनन्तरभावी हैं। २. जो विघ्न कर सकता है और विघ्न नहीं करता उसे कारण कहते हैं। वास्तव में जब भोजक उपद्रव नहीं करता (अनुपद्रोतर् तब लोग कहते हैं कि "स्वामी से हम सुखी है (स्वामिना स्मः सुखिताः [च्या १९०.१०])", क्योंकि वह उपद्रव करने में समर्थ है किन्तु उपद्रव नहीं करता। किन्तु क्या उसे कारणहेतु कह सकते हैं जो विघ्न करने में असमर्थ होने से विघ्न नहीं करता? निर्वाण किसी संस्कृत की उत्पत्ति में विघ्न करने में असमर्थ है। इसी प्रकार अनुत्पन्नधर्म अतीत धर्मो की उत्पत्ति में, नारक या तिर्यग्योनि आल्प्यस्कन्ध की उत्पत्ति में, विघ्न करने में असमर्थ हैं : निर्वाण, अनुत्पन्नधर्म, नारक असत तुल्य हैं क्योंकि विद्यमान होकर भी यह इतर संस्कृतों की उत्पत्ति में विघ्न करने में असमर्थ हैं। क्या इनको कारणहेतु मान सकते यह कारणहेतु हैं क्योंकि जब भोजक उपद्रव करने में असमर्थ होता है तब भी ग्रामीण उसी प्रकार कहते हैं जैसा कि पूर्व दृष्टांत में है किन्तु असत् भोजका के लिये वह ऐसा नहीं कहते । १ १ स्वतोऽन्ये कारणं हेतुः [धा १९०.२६] जब आर्यसत्यों का ज्ञान होता है तब क्लेशहेतु समन नहीं होते क्योंकि क्लेशों की प्राप्ति का, इस ज्ञान से छेद होता है। • माल्टन, ३.९: राजकुमार मुझे बहुत कुछ देते हैं यदि वह मेरा कुछ लेते नहीं और वह मेरा . बहुत कल्याण करते हैं यदि वह मेरा अविष्ट नहीं करते।