पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/२०१

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द्वितीय फोशस्थान : चित्त-विप्रयुक्त १८७ विशिष्ट घोप से-वर्णात्मक घोप से ही होता है तो हम कहते हैं कि जो घोष-चिशेप नामन् का उत्पाद कर सकता है वह अर्थ का भी द्योतक होगा। दूसरे विकल्प में भी यही आलोचना है, केवल 'उत्पद्' धातु के स्थान में 'प्रकाश' धातु होगा। वी. किन्तु यह काल्पना कि वाया नामन् का उत्पाद करता है युक्तिविरुद्ध है। वास्तव में शब्दों का सामग्य नहीं है यथा र-ऊ-प्-अ और नामन् का जिसे आप एक धनं, एक द्रव्य बताते हैं भागशः उत्पाद युगत नहीं है । अतः जब वार नामन् का उत्ताद करता है तब कसे वह उसका उत्पाद करता है ?—आप कहेंगे कि यह पवित्राप्ति (८. ३ डो) गदृश है : काय-याग-विज्ञप्ति का पश्चिम क्षण अतीत क्षणों की अपेक्षा कर अविज्ञप्ति का उत्ताद करता है। किन्तु हम पाहेंगे कि यदि वाग्-शब्द का पश्चिम क्षण नामन् का उत्पाद करता है तो एक पश्चिम शब्द के सुगने से अर्थ की प्रतिपत्ति होगी । यह बाल्पना कि पाक व्यंजन का उत्ताद करती है (जनयति), पंजन नाग का उन्माद करता है, नाम अर्थ की प्रतिपत्ति कराता है व्यपदेश नहीं है। वास्तव में यहां भी वही प्रसंग अस्थिन होता : "व्यंजनों का सामग्र्य नहीं होता, इत्यादि ।" इन्हीं हेतुओं से यह कल्पना भी अयुक्त है कि वार नाम का प्रकाग करती है। [गों का युगपत् अवस्थान नहीं है और एका धर्म, एक द्रव्यमत् का, जसे कि नामन् का, गागगः प्राग नहीं होता. . .एवमादि] मी. [यह विकल्प कि वाक् वर्ण का उत्पाद करती है हमने इस विकला को तत्काल दूपित नहीं बताया है-नये प्रश्न उपस्थित पारता है] | वाया से भिन्न वर्ग है यह नात विपनों को भी नहीं प्रकट होती यद्यपि यह व्यर्थ ही प्रयास करते हैं। -पुन: बाप व्यंजन की न उन्मादिका है, न प्रकाशिका। इनमें वही हेतु हैं जिनको कारण या नाम की न उपाधिका है, न प्रकाशित ['वार' घोपस्वभाव है । इसलिये सर्व घोपमात्र व्यंजन को उत्पन्न और प्रमागिन गारेगा । [२४२] यदि आपका यह उत्तर हो ति व्यंजन घोपविशेष मे ही उत्पन्न या प्रकाशित होता है. ...तो यथापूर्व, २ ए] । ३. गिन्तु गास्तिवादिन् यह सालाना कर सकता है कि जानिलमदत् नाम अगंगान होता है। यावा इनको जरादिला या प्रमागिका है इसे जानने का प्रसंग नहीं माना। इन विकल्प में अनीत-अनागन अचं या यतमान नाम न होगा।—पुनःविामाना और न्य पुगादि को नामधेय के लिये नागन् की ददृच्छा व्यवस्था करने में गिर गे गानें किन- लक्षणयत् नाम अर्थ-पान होता है ? --अन्ततः गगंगालों का नाम-नाग नोमालिनी उत्पनि नहीं होती : यर गाजियादिलों को। ४. गिन्नु गाग्निकादिन् नन मा प्रमानना। भगायन "मामानित । संपरतागम, ३६.२७, संपत्त, १.३८: नामनिनिता गाया । 'गाया पापक