पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१८१

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द्वितीय कोशस्थान : चित्त-विप्रयुक्त १६७ उत्पाद नहीं होता। समापत्ति-चित्त के कारण चित्तविरुद्ध आश्रय' या सन्तान का आपादन होता है । जिसे 'समापत्ति' कहते हैं कि वह कालान्तर के लिये चित्त की अप्रवृत्तिमात्र है। यह द्रव्यधर्म नहीं है किन्तु एक 'प्रज्ञप्तिधर्म' है। सर्वास्तिवादिन-यदि समापत्ति द्रव्यवर्म नहीं है तो यह संस्कृत कैसे है ? यह 'अप्रवृत्तिमात्र' समापत्ति-चित्त के पूर्व न था और उत्तर काल में व्युत्थित (व्युत्थान- चित्त) योगी के नहीं होता । अतः संव्यवहारतः उसे 'संस्कृत' प्राप्त करते हैं (प्रज्ञप्यते) क्योंकि इसका आदि-अन्त है। -अयवा जिसे हम 'समापत्ति' आख्या से प्रज्ञप्त करते हैं वह आश्रय का अवस्थाविशेष है जो समापत्ति-चित्त से जनित है। इसी प्रकार आसंज्ञिक (२.४१ वी-सी) को जानना चाहिये । आसंज्ञिक एक द्रव्यान्तर नहीं है जो चित्तोत्पत्ति में प्रतिवन्ध है; इस आख्या से हम असंज्ञि देवों की असंज्ञावस्था को, चित्त के अप्रवृत्तिमात्र को प्रज्ञप्त.करते हैं जो चित्त-विशेप-जनित अवस्था है । वैभापिक इस मत को स्वीकार नहीं करते। उनका मत कि आसंजिक और दो समापत्ति द्रव्यसत है। जीवितेन्द्रिय क्या है ? ४५ ए. जीवित आयु है। [२१५] वास्तव में अभिधर्म' कहता है : “जीवितेन्द्रिय क्या है ?-धातुक आयु ।" आयुर्जीवितमाघार उमविज्ञानयोहि यः । लक्षणानि पुनर्जातिर्जरा स्थितिरनित्यता ।।४५।। मायु किस प्रकार का धर्म है ? ४५ ए-बी. उष्म और विज्ञान का आधार । क्योंकि भगवत् कहते हैं कि “जब वायु, उज्म और विज्ञान काय का परित्याग करते हैं तो अपविद्ध काय शयन करता है जैसे अचेतन काठ ।" २. ५-६ में आश्रय की व्याख्या हुई है। पृ० १८३ भी देखिये । शुआन् चाङ का अनुवाद : "यह वाद सुष्टु नहीं है क्योंकि यह हमारे सिद्धांत के विरुद्ध है।"- हम इतना अधिक कहते हैं : “वभाषिक ऐसा कहते हैं।" ऊपर पृ० १९८, नोट २ देखिये। 3 आयुर्जीवितम् बुद्धघोस अभिवर्म के इस वाद को पुब्बतेलिय और सन्नितियों का बताते हैं : जीवितेन्द्रिय एक चित्तविम्पयुत्त अरूपचम्म है । कथावत्यु, ८.१०, काम्पेण्डियम पृ० १५६ देखिये; निभंग, पृ० १२३, धम्मसंगणि, १९, ६३५, अत्यत्सालिनी, ६४४ ए। ज्ञानप्रस्थान, १४, १९ (इन्द्रियस्कन्धक, १), प्रकरण, १४ वो ६; पृ० १७९ । आवार उमविज्ञानयोहि यः । वायुरुषमाय विज्ञानं यदा कायं जहत्यमी । अपवितस्तदा होते यया कामचेतनः ॥ संयुक्त, २१, १४, मध्यम, ५८, ४, संयुत, ३.१४३ (विविध पाठ); मज्झिम, १.२९६ से तुलना कीजिये ।-नीचे ४.७३ ए-बी में उद्धृत । आयः और उज्मन्, ३, १०७, ८, १३७, विभाषा, प०७७१, कालम १ १ २ 9 २ 3