पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१६९

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द्वितीय कोशस्थान : चित्त-विप्रयुक्त १५५ सौत्रान्तिक उत्तर देता है-इस वचन से सूत्र सभागता नामक द्रव्यान्तर का उपदेश नहीं देता ।--सूत्र सभागता शब्द से क्या प्रज्ञप्त करता है ?--सत्वसभागतादि शब्दों से सूत्र को स्वजाति-सादृश्य अभिप्रेत है : इसी प्रकार शालि, यव, मुद्ग, भाषादि की सभागता को जानिये । यह मत वैभाषिकों को स्वीकृत नहीं है । आसंज्ञिक कौन है ? [१९९] ४१ बी-सी. आसंजिक वह है जो असंज्ञि सत्वों में चित्त-चत्तों का निरोध करता है। जो सत्व असंज्ञि या असंजि देवों में उपपन्न होते है उनमें एक धर्म होता है जो चित्त-चत्तों का निरोध करता है और जिसे 'आसंज्ञिक' कहते हैं । इस धर्म से अनागत अध्व के चित्त-चत्त कालान्तर के लिये संनिरुद्ध होते हैं । और उत्पत्ति का लाभ नहीं करते। यह धर्म उस धर्म के सदृश है जो नदीतोय का निरोध करता है (नदीतोयनिरोधवत्) अर्थात् सेतु के सदृश है । यह धर्म एकान्ततः ४१ डी. विपाक है। यह एकान्ततः असंज्ञि समापत्ति (२.४२ ए) का विपाक है । असंज्ञि देव किस स्थान में निवास करते हैं ? ४१ डी. वह वृहत्फल में निवास करते हैं। वृहत्फल देवों का एक ऊर्ध्व प्रदेश है जो असंज्ञि सत्वों का वासस्थान है; यथा ब्रह्मपुरोहित देवों का (३.२ सी3 ; विभाषा, १५४, ८) ध्यानान्तरिका एक उच्छित प्रदेश है जो महाब्रह्मों का वासस्थान है। क्या यह असंज्ञि सत्व इसलिमें कहलाते हैं क्योंकि यह सदा असंज्ञी होते है अथवा क्या यह कदाचित् संज्ञी होते हैं ? उपपत्तिकाल और च्युतिकाल में (३.४२, विभापा, १५४, ९) वह संज्ञी होते हैं । १२२, १६ : ब्रह्मलोकसभागतायां चोपपन्नो महाब्रह्मा संवृत्तः। शिक्षासमुच्चय, १७६, ९ : स [व] निकायसभागे देवमनुष्याणां प्रियो भवति । शुआन-चाङ्ग का अनुवाद : "यह मान्य नहीं है क्योंकि यह हमारे सिद्धान्त के विरुद्ध है" । वह इस वाक्य को छोड़ देते हैं : "वैभाषिक कहते हैं। (वैभाषिक कहते हैं: “यह अयुक्त है. ") १ आसंशिकमसंशिषु । निरोघश्चित्तवेत्तानां विपाकस्तु वृहत्फले ॥ व्या० १५९.१३] --प्रकरण, फाल० १४ वो ६--दीघ, ३.२६३ : सन्तावुसो सत्ता असजिनो अस्पति- संवेदिनो सेय्यथापि देवा अतासत्ता--१.२८, ३.३३... सञ्जप्पादा च पन ते देवा तम्हा काया चवन्ति-९ सत्वावासों में से एक अंगुत्तर, ४,४०१, कोश, ३.६ सी. विभाषा, १५८, ९, ५ मत । 3 बहिर्देशक का इसके विपरीत कहना है कि चतुर्य ध्यान के लोक के ९ विभाग हैं- गृहत्कल (चेहप्फल) पर व्यूनाफ, इन्ट्रोडक्शन पृ० ६१४. ४ अन्धकों के मत का कथावत्यु, ३.२ में प्रतिषेध है । २