पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१४४

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अभिधर्मकोश हम इसे भली प्रकार जानते हैं किन्तु धर्मों की व्यवस्था स्वभाववश विविध प्रकारों में की जाती है। अतः यह व्यवस्थापित होता है कि ६ धर्म क्लेशमहाभूमिक हैं क्योंकि वही सर्व क्लिष्ट चित्त के साथ उत्पन्न होते हैं। २६ सी-डी. आह्रीक्य और अनपत्राप्य सदा और एकान्ततः अकुशलचित्त में पाये जाते हैं।' यह दो धर्म जिनका व्याख्यान नीचे (२.३२) होगा सर्वदा अकुशल चित्त में पाये जाते हैं। अतः इन्हें अकुशलमहाभूमिक कहते हैं। क्रोधोपनाह-शाठ्या-प्रदास-म्राक्ष-मत्सराः। माया-मद-चिहिंसाश्च परीत्तक्लेशभूमिकाः ॥२७॥ २७. क्रोध, उपनाह, शाठय, ईर्ष्या, प्रदास, म्रक्ष, मत्सर, माया, मद, विहिंसा आदि परीत्तक्लेशभूमिक है। [१६५] इन्हें ऐसा कहते है क्योंकि परीत्तक्लेश इनको भूमि है। परीत्तक्लेश (परीत्त-अल्पक) रागादि से असंप्रयुक्त अविद्यामात्र है (३.२८ सी-डी) । (केवला, आवेणिकी अविद्या, ५. १४) यह भावनाहेय मनोभूमिक अविद्यामात्र से ही संप्रयुक्त होते हैं। अत एव इन्हें परीत्तक्लेश- भूमिक कहते हैं। पाचवे कोशस्थान में (५.४६ आदि ) म इनका निर्देश उपक्लेशों में करेंगे। हम ५ प्रकार के चैतसिकों का निर्देश कर चुके हैं। अन्य भी चैत्त हैं जो अनियत हैं, जो कभी कुशल, कभी अकुशल या अव्याकृत चित्त में होते हैं: कीकृत्य (२.२८), मिद्ध (५.४७, ७.११ डी), वितर्क (२.३३), विचार आदि । ४ २ अकुशले त्वाहीक्यमनपत्रपा ।। [व्या० १३१.३२] ३ विभाषा, ४२, १७ के अनुसार ५ अकुशलमहाभूमिक हैं : अविद्या, स्त्यान, औद्धत्य, अहो, अनपनाप्य---३.३२ ए-बो और ऊपर पृ० १५१ देखिये। ४ [क्रोधोपनाहशाठ्येप्प्रदासम्रक्षमत्सराः । माया मदो विहिंसेति ] परोत्तफ्लेशभूमिकाः ॥ शुआन्-चाङ का अनुवाद :". .इस स्वभाव के (= इति) धर्म परीत्तक्लेशभूमिक कहलाते हैं।" संघभद्र : भाष्य कहता है। इस स्वभाव के धर्म' क्योंकि वह अक्षान्ति, अरति, आघात आदि को संगृहीत करना चाहता है। १ धर्मत्रात: बहू भावनाहेय हैं, दर्शनहेय नहीं हैं। वह मनोभूमिक है, पंचविज्ञानकायिक नहीं हैं। वह सर्वचित्त में उत्पन्न नहीं होते और उनका पृथक्भाव है अत एव वह परीत्तक्लेश- भूमिक है। ५.४६ देखिये । चीनी भाषान्तर के अनुसार-जापानी संपादक अन्तिम 'आदि' शब्द से राग (५.२), प्रतिघ, मान (५.१०) विचिकित्सा का ग्रहण करते हैं। व्याख्या (१३३.१४) में पठित्त है : "कोकृत्य, मिद्ध, आदि और 'आदि' शब्द से वह अरति विज भिता, तन्द्री, भक्तेऽसमता आदि का ग्रहण करती है। व्याख्या में पुनः कहा है कि रागादि फ्लेश अनियत हैं क्योंकि यह पांच प्रकार में से किसी में भी नियत नहीं है। यह