पृष्ठ:अभिधर्म कोश.pdf/१३४

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१२० अभिधर्मकोश [१५२] २३ सी-डी. चैत्त महाभूमिकादि भेद से पंचविध है।' जो चैत्त सर्वचित्तसहगत हैं वह महाभूमिक हैं; जो सर्वकुशलचित्तसहगत है वह कुशलमहा- भूमिक हैं; जो सर्वक्लिष्टचित्तसहगत हैं वह क्लेशमहाभूमिक हैं, जो, सर्वअकुशलचित्तसहगत हैं वह अकुशलमहाभूमिक हैं; जिनकी भूमि परीत्तक्लेश है वह परीत्तक्लेशभूमिक हैं । , भूमि का अर्थ 'गतिविषय' (उत्पत्तिविषय) है । एक धर्म का उत्पत्ति-स्थान उस धर्म की भूमि है। 'महाभूमि' नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह महान् धर्मो की [अर्थात् अति विस्तृत धर्मो की जो सर्वचित्त में होते हैं] भूमि, उत्पत्ति-विषय है । महाभूमि में जो धर्म सहज है वह महाभूमिक कहलाता है अर्थात् यह वह धर्म है जो सर्व चित्त में सदा होता है । .प्रज्ञा-१० ..प्रमाद (नीचे (कोश, १.२८)--१० महाभूमिक क्या हैं ? अर्थात् वेदना. कुशलमहाभूमिक क्या हैं ? अर्थात् श्रद्धा, वीर्य, ह्री, अपत्रपा, अलोभ, अद्वेष, प्रश्रब्धि, उपेक्षा, अप्रमाद, अहिंसा--१० दलेशमहाभूमिक क्या है ? अश्राद्धय.. २.२६ ए-सी में यह सूची दी है)----१० परीत्तक्लेशभूमिक क्या हैं ? अर्थात् क्रोध, उपनाह, प्रक्ष, प्रदास, ईर्ष्या, मात्सर्य, शाठ्य, माया, मद, विहिंसा-- ५ क्लेश क्या है ? अर्थात् कामराग, रूपराग, आरूप्यराग, प्रतिघ, विचिकित्सा (५.१) । ५ दृष्टि क्या है ? अर्थात् सत्कायदृष्टि, अन्तग्राहदृष्टि, मिथ्यादृष्टि, दृष्टिपरामर्श, शोलंदातपरामर्श (५.३)--५ संस्पर्श क्या हैं ? अर्थात् प्रतिघ, अधिवचन, विद्या', अविद्या , नवविद्यानाविद्यासंस्पर्श (३.३० सी-३१ ए)--५ इन्द्रिय क्या है ? अर्थात् सुर्खेन्द्रिय, दुःखेन्द्रिय, सौमनस्येन्द्रिय, दौमनस्येन्द्रिय, उपेक्षेन्द्रिय (२.७)-- ५ धर्म क्या हैं ? अर्थात् वितर्क, विचार, विज्ञान, आह्लीक्य, अनपत्राप्य [कोश, २. २७ में वितर्क और विचार अनियत माने गए हैं। २.२६ डी में, आह्रीक्य और अनपत्राप्य अकुशल महाभूनिक माने गए हैं। यह प्रकार बहुत आगे चल कर कल्पित हुआ है, ३.३२ ए-वी देखिए; प्रकरण और धातुकाय में यहाँ जो विज्ञान अभिप्रेत है वह निस्सन्देह ६ विज्ञानकाय हैं]--६ विज्ञानकाय क्या है ? अर्थात् चक्षुर्विज्ञान . .मनोविज्ञान ।--६ संस्पर्श- , काय क्या है ? अर्थात चक्षुःसंस्पर्श .. मनःसंस्पर्श (३.३० वी.)--६ वेदनाकाय क्या है ? अर्थात् चक्षुःसंस्पर्शजवेदना. . . (३.३२ ए)---६ संज्ञाकाय क्या हैं ? अर्यात् चक्षुःसंस्पर्शजसंज्ञा.. .६ चेतनाकाय क्या हैं ? अर्थात् चक्षुःसंस्पर्शजचेतना ६ तृष्णाकाय क्या है ? अर्थात् चक्षुःसंस्पर्शजतृष्णा. धातुकाय महाभूमिकों का व्याख्यान करता है: "वेदना क्या है ?" (२.२४ पृ. १५३ नोट १ सी . देखिए) सो. कयावत्यु, ७.२-३, राजगिरिक और सिद्धद्वियक धर्मों के संप्रयोग, चैतसिकों के अस्तित्व का प्रतिषेध करते है। ९.८, उत्तरापथक वितर्क को महाभूमिक मानते है (पारिभाषिक शब्द नहीं है)--विसुद्धिमन्ग, १४.---अभिधम्मसंगह, २. काम्मैडियम, पृ०२३७ में एस० जेड आंग और सी० ए० एफ० राइस डेविड्स को चैत- सिक वाद के विकास पर रोचक सूचनाएँ हैं। पञ्जा और विभाग के संसर्ग कावाद, शिम, १,२९३ १ पंचचा चत्ता महाभूम्यादिभेदतः ॥ २ जापानो संपादक द्वारा उद्धृत विभाषा(१६,१२ वी) के अनुसारःमहाभूमिक धर्मकाक्या अर्थहे ? ए. 'महान्' चित्त है। यह १० धर्म भूमि है अर्थात् चित्त के उत्पत्ति-विषय हैं; 'महान्' को भूमि