अप्सरा अपने धर्म में रहने के कारण कितना बड़ा है, सर झुकाए हुए इसका निर्णय करता हुआ चला गया। फिर राजकुमार को दिखलाने पर वह शायद ही पहचानता, घृणा के कारण उसकी नजर राजकुमार पर इतना कम ठहरी थी। प्रकाश के कारण अब बाहर से राजकुमार भी भीतर देख रहा था। कनक को उसने एक बार, दो बार, कई बार देखा । वह पीली पड़ गई थी, पहले से कुछ कमजोर भी देख पड़ती थी। राजकुमार के हृदय के भाव उसके आँसुओं में मलक रहे थे। मन उसके विशेष प्राचरणो की आलोचना कर रहा था। इसी समय कनक की अचानक उस पर निगाह पड़ी। सवौंग काँप उठा। इतना सुख उसे कभी नहीं मिला था। राजकुमार से मिलने के समय भी नहीं। फिर देखा, आँखों की प्यास बढ़ती ही गई । उत्कंठा की तरंग उठी, वह भी उठकर खड़ी हो गई और राजकुमार की तरफ चली। कनक को राजकुमार ने देखा। समझ गया कि वह उसी से मिलने आ रही है। राजकुमार को बड़ी लजा लगी, कनक के वर्तमान व्यवसाय पर और उससे अपनी घनिष्ठता के कारण वह हिम्मत करके भी उस जगह, उजाले मे, नहीं रह सका । तारा से कनक को यदि न मिलाना होता, तो शायद कनक को इस परिस्थिति में देखकर वह एक क्षण भी वहाँ न ठहरता। कनक ने देखा, राजकुमार एक अंधेरे कुंज की तरफ धीरे-धीरे बढ़ रहा है। कनक भी उधर ही चली। इतने समय की तमाम बातें एक ही साथ निकलकर हृदय और मस्तिष्क को मथ रही थीं। राजकुमार के पास पहुँचते ही कनक को चक्कर आ गया। उसे जान पड़ा कि वह गिर जायगी। बचाव के लिये स्वभावतः एक हाथ उठकर राजकुमार के कंधे पर पड़ा । अज्ञात-चालित राजकुमार ने भी उसे आपृष्ठ कमर एक हाथ से लपेटकर थाम लिया । कनक अपनी देह का तमाम भार राजकुमार पर रख आराम करने लगी, जैसे अब तक की की हुई सपस्या का फल भोग कर रही हो । राजकुमार थामे खड़ा रहा। "तुमने मुझे भुला दिया. मैं अपना अपराध भी न समझ सकी।"
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