८५ अप्सरा तार पाने के पश्चात् अपने कर्मचारियों में कॅवर साहब ने कनक की बड़ी तारीफ की थी, जिससे ६-७ कोस के इर्द-गिर्द एक ही दिन मे खबर फैल गई कि कलकत्ते की एक तवायक श्रा रही है, जिसका मुकाबला हिंदोस्तान की कोई भी गानेवाली नहीं कर सकती । आज दाही बजे से तमाम गाँवों के लोग एकत्र होने लगे थे। आज ही से महफिल शुरू थी। ___ कनक माता के साथ ही विजिटर्स कार पर बैठने लगी, तो एक सिपाही ने कहा-"कनक साहब के लिये महाराज ने अपनी मोटर भेजी है।" "तुम उस पर बैठो। सर्वेश्वरी ने कहा । ___नहीं, इसो पर चलेंगी।" "यह क्या ? हम जैसा कहें, वैसा करो।" कनक उठकर राजा साहब की मोटर पर चली गई। ड्राइवर कनक को ले चला । सर्वेश्वरी की मोटर खड़ी रही। कहने पर भी ड्राइवर 'चलते हैं, चलते हैं।" इधर-उधर करता रहा। कभी पानी पीता, कभी पान खाता, कमी सिगरेट सुलगाता। सर्वेश्वरी का कलेजा काँपने लगा।शंका की अनिमेष दृष्टि से कनक की मोटर की तरफ ताकती रही। मोटर अदृश्य हो गई। कनक भी पहले घबराई । पर दूसरे ही क्षण सँभल गई । एक अमोघ मंत्र जो उसके पास था, वह अब भी है। उसने सोचा, रही शरीर की बात, इसका सदुपयोग, दुरुपयोग भी उसके हाथ में है। फिर शंका किस बात की ? जिसका कोई लक्ष्य ही न है, उसकी किसी भी प्रगति का विचार ही क्या? ____ कनक निस्वस्त एक बगल पीछे की सीट में बैठी थी। मोटर उड़ी जा रही थी। ड्राइवर को निश्चित समय पर कुँवर साहब के पास पहुंचना था । भावी के दृश्य कनक के मन को सजग कर रहे थे। पर उसका हृदय बैठ गया था। अब उसमें उत्साह नहीं रह गया था। रास्ते के पेड़ों, किनारे खड़े हुए आदमियों को देखती, सब कुछ अपरि- चित था । हृदय की शून्यता बाहर के अज्ञात शून्य से मिल जाती।
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