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अप्सरा ___ कनक रात्रि के सौंदर्य की तरह इन सबकी आँखों से छिप गई। रही केवल गायिका-नायिका कनक ! अपनी तमाम चंद्रिकाओं के साथ बादलों की आड़ से अब ज्योत्स्ना एक दूसरे ही लोक में थी, यहाँ उसकी छाया-मात्र रह गई थी। कनक तार कर चुकी थी।चलते समय इनकार नहीं किया। सर्वेश्वरी कुछ देर तक कैथरिन की प्रतीक्षा करती रही । पर जब गाड़ी के लिये सिर्फ श्राधा घंटा समय रह गया, तब परमात्मा को मन-ही-मन स्मरण कर मोटर पर बैठ गई । कनक भी बैठ गई । कनक समझ गई, कैथरिन केन आने का कारण उस रोज का जवाब होगा । कनक और सर्वेश्वरी को फर्स्ट क्लास का किराया मिला था। कनक का नहीं मालूम था कि कमी कुँवर साहब को वह इतनी तेज निगाह से देख चुकी है कि देखते ही पहचान लेगी। सर्वेश्वरी भी नहीं जानती थी कि कुँवर साहब के आदमी कभी उसके मकान आकर लोट गए हैं, वही कुँवर साहब बालिग होकर अब राजा साहब के आसन पर लाखों प्रजाओं का शासन करेंगे। . . रेल समय पर, ठीक चार बजे शाम को, विजयपुर स्टेशन पहुंची। विजयपुर वहाँ से तीन कोस था। पर राजधानी होने के कारण स्टेशन का नाम विजयपुर ही रखखा गया था। राजा साहब, इनके पिता, ने इसी नाम से स्टेशन करने के लिये बड़ी लिखा-पढ़ी की थी, कुछ रुपए भी दिए थे। कंपनी उन्हीं के नाम से स्टेशन कर देना चाहती थी, पर राजा साहब पुराने विचायें के मनुष्य थे। रुपए को नाम से अधिक महत्व देते थे। कंपनी की माँगी हुई रकम देना उन्हे मंजूर न था। कहते हैं, एक बार स्वाद की बातचीत हो रही थी, तो उन्होंने कहा था कि बासी दाल में सरसों का तेल डालकर, खाय, तो ऐसा स्वाद और किसी सालन में नहीं मिलता। वे नहीं थे, पर गरीबों में उनकी यह कीर्वि-कथां रह गई थी। स्टेशन पर कनक के लिये कुंवर साहब ने अपनी मोटर भेज दी थी। सर्वेश्वरी के लिये विजिटर्स मोटर और उसके भादमियों के लिये एक लारी