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अप्सरा

( १ )

इडन गार्डेन में, कृत्रिम सरोवर के तट पर, एक कुंज के बीच, शाम सात बजे के क़रीब, जलते हुए एक प्रकाश-स्तंभ के नीचे पड़ी हुई एक कुर्सी पर, सत्रह साल की चंपे की कली-सी एक किशोरी बैठी हुई, सरोवर की लहरों पर चमकती हुई चाँद की किरणें और जल पर खुले हुए, काँपते, बिजली की पत्तियों के कमल के फूल एकचित्त से देख रही थी। और दिनों से आज उसे कुछ देर हो गई थी। पर इसका उसे ख़याल न था।

युवती एकाएक चौंककर काँप उठी। उसी बैंच पर एक गोरा बिलकुल उससे सटकर बैठ गया। युवती एक बग़ल हट गई। फिर कुछ सोचकर, इधर-उधर देख, घबराई हुई, उठकर खड़ी हो गई। गोरे ने हाथ पकड़कर ज़बरन बेंच पर बैठा लिया। युवती चीख उठी।

बाग़ में उस समय इक्के-दुक्के आदमी रह गए थे। युवती ने इधर उधर देखा, पर कोई नजर न आया। भय से उसका कंठ भी रुक गया। अपने आदमियों को पुकारना चाहा, पर आवाज न निकली। गोरे ने उसे कसकर पकड़ लिया।

गोरा कुछ निश्छल प्रेम की बातें कह रहा था कि पीछे से किसी ने उसके कालर में उँगलियाँ घुसेड़ दीं, और गर्दन के पास कोट के साथ पकड़कर साहब को एक बित्ता बेंच से ऊपर उठा लिया, जैसे चूहे को बिल्ली। साहब के कब्जे से युवती छूट गई। साहब ने सर घुमाया। आगंतुक ने दूसरे हाथ से युवती की तरफ़ सर फेर दिया---"अब कैसी लगती है?

साहब झपटकर खड़ा हो गया। युवक ने कालर छोड़ते हुए ज़ोर से