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६८ अप्सरा सजीव स्वर में बोलती हुई, स्वतंत्रता के अभिषेक से दस-मुख, मनुष्य का मनुष्यता की शिक्षा देनेवाली किताबें थीं। राजकुमार दो मिनट तक दोनो हाथ कमर से लगाए उन किताबों को देखता रहा। युवती राजकुमार को देख रही थी। टप-टप कई बूंद आँसू राजकुमार की ऑखों से गिर गए। उसने एक ठंडी साँस ली। मुकुलित आँखों से युवती भविष्य की शंका की ओर देख रही थी। ___ "ये कुल किताबें अब चंदन के राजनीतिक चरित्र के लिये आपत्ति- कर हो सकती हैं।" ___ "जैसा जान पड़े, करो।" • "भैयाजी इन्हें जला देते।" "और तुम ?" "मैं जला नहीं सकूँगा।" "तब ?" "भाई चंदन, तुम जीते। मेरी सौंदर्य की कल्पना एक दूसरी जगह छिन गई, मेरी दृढ़ता पर तुम्हारी विजय हुई।" राजकुमार सोच रहा था, युवती राजकुमार को देख रही थी। "इन्हें मैं अपने यहाँ ले जाऊँगा।" "अगर तुम भी पकड़ लिए गए ? न, रज्जू बाबू इनको फूक दो।" राजकुमार की आँखों से युवती डर गई। राजकुमार ने किताबों को एकत्र कर बाँधा।"और जहाँ-जहाँ आप जानती हों, जल्द देख लीजिए । अब दो तो बजे होंगे ?" युवती कर्तव्य-रहित की तरह निर्याक खड़ी राजकुमार की कार्यवाही देख रही थी। सचेत हो उपर की कोठरियों के काराज-पत्र देखने चली। कमरे के बाहर महरी खड़ी हुई मिली। एकाएक इस परिवर्तन को देखकर भोतर आने की उसकी हिम्मत नहीं हुई । वहशत खाई हुई बोली, जल-पान बड़ी देर से रक्खा है। युवती लौट आई। राजकुमार से कहा, रब्जू बाबू पहले कुछ जल पान कर लो।