५६ अप्सरा अंगरेजी के कई पत्र कायदे से टेबिल पर रक्खे थे। एक पत्र में बड़े- बड़े अक्षरों में लिखा था-"चंदनसिंह गिरफ्तार ." ___ आग्रह-स्फारित आँखों से एक साँस में राजकुमार कुल इबारत पढ़ गया। लखनऊ-षड्यंत्र के मामले में चंदन गिरफ्तार किया गया था।दनो एक ही साथ कॉलेज में पढ़ते थे। दोनो एक ही दिन अपने- अपने लक्ष्य पर पहुँचने के लिये मैदान में आए थे। चंदन राजनीति की तरफ गया था। राजकुमार साहित्य की तरफ । चंदन का स्वभाव कोमल था, हृदय उन । व्यवहार में उसने कभी किसी को नीचा नही दिखाया। राजकुमार को स्मरण आया, वह जब उससे मिलता, झरने की तरह शुभ्र स्वच्छ बहती हुई अपने स्वभाव की जल-राशि में नहला वह उसे शीतल कर देता था। वह सदा ही उसके साहित्यिक कार्यों की प्रशंसा करता रहा है। उसे वसंत की शीतल हवा में सुगंधित पुष्पों के प्रसन्न कौतुक-हास्य के भीतर कोयलों, पपीहों तथा अन्यान्य वन्य विहंगों के स्वागतगीत से मुखर डालों की छाया से होकर गुजरने- वाला देवलोक का यात्री ही कहता रहा है, और अपने को प्रीष्म के तपे हुए मार्गो का पथिक, संपत्तिवालों की ऋर हास्य-कुंचित दृष्टि में फटा निस्सम्मान भिक्षुक, गली-गली की ठोकरें खाता हुआ; मारा- माय फिरनेवाला रस-लेश रहित कंकाल बतलाया करता था। वहीं मित्र, दुख के दिनों का वही साथी, सुख के समय का वही संयमी आज निस्सहाय की तरह पकड़ लिया गया। राजकुमार क्षब्ध हो उठा। अपनी स्थिति से उसे घृणा हो गई। एक तरफ उसका वह मित्र था, और दूसरी तरफ माया के परिमल वसंत में कनक के साथ वह ! छिः छिः, वह और चंदन ? . राजकुमार की सुप्त वृत्तियाँ एक ही अंकुश से सतर्क हो गई। उसकी प्रतिज्ञा घृणा की दृष्टि से उसे देख रही थी-“साहित्यिक ! तुम कहाँ हो ? तुम्हें केवल रस-प्रदान करने का अधिकार है, रस-ग्रहण करने का नहीं।" उसी की प्रकृति उसका तिरस्कार करने लगी- आज आँसु
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