यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
समर्पण

अप्सरा को साहित्य में सबसे पहले मंद गति से सुंदर-सुकुमार कवि-मित्र श्रीसुमित्रानंदन पंत की ओर बढ़ते हुए देख मैंने रोका नहीं। मैंने देखा, पंतजी की तरफ एक लेह-कटाक्ष कर, सहज फिरकर उसने मुझसे कहा, इन्हीं के पास बैठकर इन्हीं से मैं अपना जीवन-रहस्य कहूँगी, फिर चली गई।