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अप्सरा

अप्सरा चाहती थी, संध्या के स्वण-लोक में अपने सफल जीवन की प्रथम स्मृति को हृदय में सोने के अक्षरों से लिख ले। इंगित से एक नौकर को बुला कनक ने पढ़ने के कमरे से कागज, कलम और दावात ले आने के लिये कहा । सुर-बहार वहीं गट्टी पर एक बराल रख दिया। नौकर कुल सामान ले आया। ____कनक ने कुछ ऑर्डर लिखा, और गाड़ी तैयार करने की आज्ञा दी। ऑर्डर नौकर को देते हुए कहा-"यह सामान नीचे की दूकान से बहुत जल्द ले आओ।" राजकुमार को कनक की शिक्षा का हाल नहीं मालूम था । वह इसे साधारण पढ़ी-लिखी स्त्री में शुमार कर रहा था । कनक जब ऑर्डर लिख रही थी, तब लिपि से इसे मालूम हो गया कि यह अंगरजी लिपि है, और कनक अंगरेजी जानती है । लिखावट सजी हुई दूर से मालूम दे रही थी। "अब हवाखोरी का समय है। कनक एक भार का अनुभव कर रही थी, जो बोलने के समय उसके शब्दों पर भी अपना गुरुत्व रख रहा था। राजकुमार के संकोच की अर्गला, कनक के अदब के कारण, शिष्टता और स्वभाव के अकृत्रिम प्रदर्शन से, आप-ही-आप खुल गई । यों भी वह एक बहुत ही खुला हुश्रा, स्वतंत्र प्रकृति का युवक था। अनावश्यक सभ्यता का प्रदर्शन उसमें नाम मात्र को न था। जब तक वह कनक को समझ नहीं सका, तब तक उसने शिष्टाचार किया। फिर घनिष्ठ परिचय के पश्चात्, अभिनय से सत्य की कल्पना लेकर, दोनो ने एक दूसरे के प्रति कार्यतः जैसा प्रेम सूचित किया था, राजकुमार उससे कनक के प्रसंग को बिलकुल खुले हुए प्रवाह की तरह, हवा की तरह, स्पर्श कर बहने लगा । वह देखता था, इससे कनक प्रसन्न होती है, यद्यपि उसकी प्रसन्नता बाढ़ के जल की तरह उसके हृदय के फूलों को छापकर नहीं छलकने पाती । केवल अपने सुख की पूर्णता, अपनी अंतस्तरंगों की टलमल, प्रसन्नता, अपनी सुखद स्थिति का ज्ञान-मात्र कर देती है।