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अप्सरा

कनक ने एक बार पर हाथ फेर लिया। फिर गाने लगी- गामा (सारंग) याद रखना, इतनी ही बात । नहीं चाहते, मत चाहो तुम, मेरे अयं सुमन-दल नाय । मेरे वन में भ्रमण करोगे जब तुम, अपना पथ-श्रम श्राप हरोगै जब तुम, । ढक लूगी मैं अपने इंग-मुख, छिपा - रहूँगी गाव- याद रखना, इतनी ही बात। सरिता के उस नीरव निर्जन तट पर, प्रायोगे जब मंद चरण तुम चलकर, मेरे शल्य घाट के प्रति करुणाकर, __ हेरोगे नित प्रात- याद रखना, इतनी ही बात । मेरे पथ की.हरित लताएँ, तृण-दल, मेरे भम-सिंचित, देखोगे, अचपल, पलकहीन नयनों से तुमको प्रतिपक्ष हेरेंगे अशात- याद रखना, इतनी ही बात। मैं न रहूँगी जब, सूना होगा जग, समझोगे तब यह मंगल-कलरव सब, था मेरे ही स्वर से सुंदर जगमग; ' चला गया सब साथ- याद रखना, इतनी ही बात । साहब एकटक मन की आँखों से देखते, हृदय के कानों से सुनते रहे उस स्वर की सरिता अनेक तरंगभंगों से बहती हुई जिस समुद्र