तान नबर के पालाशान मान के नाच टक्सापड हा २ पुरस्कृत नमादार न लाटकर अपन पुरस्कार का हाल +1 स कह दिया था। कनक ने उसे ही द्वार पर दारोगा साहब के स्वागत के लिये रक्खा था. और समझा दिया था, बड़े अदब से, दो मंजिलेवाले कमरे में. जिसमे मैं पढ़ती थी, बैठाना, और तब मुझे खबर देना। जमादार ने सलाम कर थानेदार साहब को उसी कमर में ले जाकर एक कांच पर बैठाया, और फिर ऊपर कनक को खबर देने के लिये गया। उस कमरे में, शीशेदार अलमारियों में, कनक की किताबें रक्खी थीं। उनकी जिल्दों पर सुनहरे अक्षरों से किताबों के नाम लिखे हुए थे। दारोगाजी विद्या की तौल में कनक को अपने से जितना छोटा, इसलिये अमान्य समझ रहे थे, उन किताबों की तरफ देखकर उसके प्रति उनके दिल में कुछ इज्जत पैदा हो गई। उसकी विद्या की मन- ही-मन बैठे हुए थाह ले रहे थे। ____कनक ऊपर से उतरी । साधारणतः जैसी उसकी सजा मकान में रहती थी, वैसी ही थी. सभ्य तरीके से एक जरी की किनारीदार देशी साड़ी, लेडी मोजे और जूते पहने हुए। कनक को आते देखकर थानेदार साहब खड़े हो गए । कनक ने हँसकर कहा-"गुड मॉर्निंग।" थानेदार कुछ मेंप गए । डरे कि कहीं बातचीत का सिलसिला अँगरेजी में इसने चलाया, तो नाक ही कटेगी। इस व्याधि से बचने के लिये उन्होंने स्वयं ही हिंदी में बात- चीत छेड़ी-"आपका नाटक कल देखा, मैं सच कहता हूँ, ईश्वर जाने, ऐसा नाटक जिंदगी-भर मैंने नहीं देखा। ___ "आपको पसंद आया, मेरे भाग्य । माजो तो उसमें तरह-तरह की त्रुटियाँ निकालती हैं। कहती हैं, अभी बहुत कुछ सीखना है-तारीफ- वाली कोई बात नहीं हुई।" __ कनक ने रुख बदल दिया। सोचा, इस तरह व्यर्थ ही समय नष्ट करना होगा। "श्राप हम लोगों के यहाँ जलपान करने में शायद संकोच करें ?"
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