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१८
अप्सरा

१८ अप्सरा कुछ दिनक्रत पड़ सकती है। गाने-बजाने पर भी मेरा ऐसा ही विचार रहेगा। हाँ, राजकुमार को तुम नहीं जानतीं, इन्हीं ने मुझे इडन गार्डेन में बचाया था।" ___ कन्या की भावना पर, ईश्वर के विचित्र घटनाओं के भीतर से इस प्रकार मिलाने पर, कुछ देर तक सर्वेश्वरी सोचती रही। देखा, उसके हृदय के कमल पर कनक की इस उक्ति की किरण सूर्य की किरण की तरह पड़ रही थी, जिससे आप-ही-आप उसके सब दल प्रकाश की ओर खुलते जा रहे थे। तरंगों से उसका लेह-समुद्र कनक के रेखा- तट को छाप जाने लगा। इस एकाएक स्वाभाविक परिवर्तन को प्रत्यक्ष कर सर्वेश्वरी ने अप्रिय विरोधी प्रसंग छोड़ दिया। हवा का रुख जिस तरफ हो, उसी तरफ नाव को बहा ले जाना उचित है, जब कि लक्ष्य केवल सैर है, कोई गम्य स्थान नहीं। हँसकर सर्वेश्वरी ने पूछा--"तुम्हारा इस प्रकार स्वयंवरा होना उन्हें भी मंजूर है न, या अंत तक शकुंतला ही की दशा तुम्हें मोगनी होगी और वे तो कैद भी हो गए हैं ?" __कनक संकुचित लज्जा से द्विगुणित हो गई । कहा--"मैंने उनसे तो इसकी चर्चा नहीं की । करना भी व्यर्थ । इसे मैं अपनी ही हद तक रक्खू गी। किसके कैसे खयालात हैं, मुझे क्या मालूम ? अगर वे मुझे मेरे कुल का विचार कर ग्रहण न करें, वो इस तरह का अपमान बरदाश्त कर जाना मेरी शक्ति से बाहर है। वे कैद शायद उसी मामले में हुए हैं। ____उनके बारे में और भी कुछ तुम्हारा समझा हुआ है. ? ___“मैं और कुछ भी नहीं जानती अम्मा ! पर कल तक......सोचती हूँ, थानेदार को बुलाकर कुल बातें पू। और पता लगाकर भी देखू कि क्या कर सकती हूँ।" सर्वेश्वरी ने कुँवर साहब के आदमियों के पास कहला भेजा कि कनक की तबियत अच्छी नहीं, इसलिये किसी दूसरे दिन गाना सुनने की कृपा करें।