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अप्सरा

गृज उठा। सीटियाँ बजने लगीं। "अहा हाहा ! कुर्बान जाऊँ. साफा! कुर्बान जाऊँ डंडा !! छछूंदर जैसी मूंछे ! यह कट्ट, जैसा मुँह !!"

दारोगाजी का सर लटक पड़ा।"भागो—भागो-मागो" के बीच उन्हें भागना ही पड़ा। मैनेजर ने कहा, नाटक हो जाने के बाद आप उन्हें गिरफ्तार कर लीजिए । मैं उनके पास गया था। उन्होंने आपके लिये यह संवाद भेजा है । दारोगा को मैनेजर गेट पर ले जाने लगे, पर उन्होंने स्टेज के भीतर रहकर नाटक देखने की इच्छा प्रकट की। मैनेजर ने टिकट खरीदने के लिये कहा । दारोगाजी एक बार शान से देखकर रह गए। फिर अपने लिये एक आर्चेस्ट्रा का टिकट खरीद लिया। कांस्टेब्लों को मैनेजर ने थर्ड क्लास में ले जाकर भर दिया। वहाँ के लोगों का मनोरंजन की दूसरी सामग्री मिल गई।

थिएटर होता रहा । मिस कनक द्वारा किया हुआ शकुंतला का पार्ट लोगों को बहुत पसंद आया। एक ही रात में वह शहर भर में प्रसिद्ध हो गई।

नाटक समाप्त हो गया । राजकुमार ग्रीन-रूम से निकलने पर गिरफ्तार कर लिया गया।

( ५ )

एक बड़ी-सी, अनेक प्रकार के देश-देश की अप्सराओं, बादशाह-जादियों, नर्तकियों के सत्य तथा काल्पनिक चित्रों तथा बेल-बूटो से सजी हुई दालान; झाड़-फानूस टॅगे हुए ; फर्श पर क्रीमती गलीचे-सा कारपेट बिछा हुआ; मखमल की गद्दीदार कुर्सियाँ, कोच और सोफे तरह-तरह की मेजों के चारो ओर कायदे से रक्खे हुए ; बीच-बीच बड़े-बड़े, आदमी के आकार के ड्योढ़े, शीशे, एक तरफ टेबल-हारमोनियम और एक तरफ पियानो रक्खा हुआ ; और-और यंत्र भी सितार, सुर-बहार, एसराज, वीणा, सरौद, बैंजो, बेला, क्लारियोनेट,कार्नेट, मॅजीरे, तबले, पखावज, सरंगी आदि यथास्थान सुरक्षित रक्खे हुए; कहीं-कहीं छोटी-छोटी मेजों पर चीनी मिट्टी के क्रीमती बर्तन साज के तौर पर रक्खे हुए किसी-किसी में फूलों के तोड़े रंगीन शीशे-जडे