यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१६० अप्सरा "हॉ हॉ, मैं भूल गया था। भाभी ने तुम्हें बुलाया है।" कनक ने वीणा रख दी। गाड़ी तैयार करने के लिये कहा । इनकी प्रतीक्षा से पहले कपड़े बदल चुकी थी। उठकर खड़ी हो गई। जूते पहन लिए । आगे-आगे उतरने लगी। पति का अदब-कायदा सब भूल गया।बोच में राजकुमार था, पीछे चंदन। चंदन मुस्किराता जाता था। मन-ही-मन कहता था, इस आकाश की पक्षी से पोंजड़े में 'राम-राम' रटाना समाज की बेवकूफी है; इसका तो इसी रूप में सौंदर्य है। ____गाड़ी तैयार थी। आग डाइवर और अदली बैठे थे। पीछे दाहनी ओर राजकुमार, बाइ पार चंदन, बीच में कनक बैठ गई। . ___ गाड़ी भवानीपुर चली। ___ कुछ साचते हुए चंदन ने कहा-'जी-मुझे एक हजार रुपए दो, मैंने हरदोई-जिले में, देहात में, एक राष्ट्रीय विद्यालय खोला है, उसकी मदद के लिये। ___“आज तुमको अम्मा से चेक दिला दूंगी" कनक ने कुछ सोचे विना नहीं, मुझे चेक देने की जरूरत नहीं, मैं तुम्हें पता बतला दूंगा, अपने नाम से उसो पते पर भेज देना।" सोचत हुए चंदन ने कहीं। ___ "तुम भीख माँगने में बड़े निपुण देख पड़ते हो।" राजकुमार ने कहा। ___"तुम जी-को उपहार नहीं दोगे ?" चंदन ने पूछा। "क्यों ? वक्तता के प्रभाव से बेचवाने का इरादा है ?" "नहीं, पहले जब उपन्यासों की चाट थी, कॉलेज-जीवन में, देखता था, प्यार के उबाल में उपहार ही इंधन का काम करते थे। "पर यह ता देवी संयाग है।" राजकुमार ने मुस्किराकर कहा।। ___ अनेक प्रकार की बातों से रास्ता पार हो गया। चंदन के गेट के सामने गाड़ी पहुँची । तारा प्रतीक्षा कर रही थी। नीचे उतर आई। बड़े स्नेह से कनक को ऊपर ले गई। राजकुमार और चंदन को भी बुलाया। ये भी पीछे-पीछे चले।