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अप्सरा १५६ दाना कनक क मकान पर आ गए । नौकर से पहले ही कनक ने कह रक्खा था कि दीदी के यहाँ के लोग आवे, वो साथ वह विना खबर दिए ही उसके पास ले जायगा। नौकर दोनो को कनक के पास ले गया । कनक राजकुमार को जरासासर झुका, हँसकर चंदन से मिली। हाथ पकड़ गद्दी पर बैठाया। ___ चंदन बैठते हुए कहता गया, "पहले अपने-अपने उनको उठायो बैठाओ ; मैं तो यहाँ उन्हीं के सिलसिले से हूँ।" ___“उनका तमाम मकान है, जहाँ चाहें, उठे-बैठे।" कनक होंठ काटकर मुस्किराती जाची थी। . . राजकुमार भी चंदन के पास बैठ गया। तत्काल चंदन ने कहा"उनका तमाम मकान है, और मेय?" ___ "तुम्हाय ? तुम्हारी मैं और यह ।" चंदन मेंप गया। कनक भी उसी गद्दी पर बैठ गई। चंदन ने कहा-"तुम मुझसे बड़ी हो, पर आप-आप कहते मुझे बड़ा बुरा लगता है। मैं तुम्हारे इन्हीं को आप नहीं कहता ! तुम चुन दो, तुम्हें क्या कहूँ " "तुम्हारी जो इच्छा।" कनक स्नेह से हँस रही थी। "मैं तुम्हें जी कहूँगा।" "तुमने जीजी को एक बटे दो किया । एक हिस्सा मुझे मिला, एक किसके लिये रक्खा?" ___वह इनके लिये है। क्यों जी, इस तरह "जीजी" यन्न व्यति वदव्ययम् कही जायगी, या कहा जायगा ?" राजकुमार कुछ न बोला । कनक ने बराल से उठाकर घंटी बजाई नौकर के आने पर पखावज और वीणा बढ़ा देने के लिये कहा। खुश होकर चंदन ने कहा- हाँ जी-तुम्हारा गाना तो सुनूंगा।" "पखावज लीजिए।' कनक ने कहा । "गाना लौटकर हो, तो अच्छा होगा। अभी बहू के पास जान.. है।" राजकुमार ने साधारण गंभीरता से कहा।