बड़े लोग इन्हें ही कला की दृष्टि से देख रहे थे। कोई छः फीट ऊँची, तिस पर नाक नदारद; कोई डेढ़ ही हाथ की छटंकी, पर होंठ आँखों की उपमा लिए हुए आकर्ण-विस्तृत; किसी की साढ़े तीन हाथ की लंबाई चौड़ाई में बदली हुई--एक-एक क़दम पर पृथ्वी काँप उठती, किसी की आँखें मक्खियों-सी छोटी और गालों में तबले मढ़े हुए; किसी की उम्र का पता नहीं, शायद सन् ५७ के ग़दर में मिस्टर हडसन को गोद खिलाया हो, इस पर जैसी दुलकी चाल सबने दिखाई, जैसे भुलभुल में पैर पड़ रहे हों। जनता गेट से उनके भीतर चले जाने के कुछ सेकेंड तक तृष्णा की विस्तृत अपार आँखों से कला के उस अप्राप्य अमृत का पान करती रही।
कुछ देर के बाद एक प्राइवेट मोटर आई। बिना किसी इंगित के ही जनता की क्षुब्ध तरंग शांत हो गई, सब लोगों के अंग रूप की तड़ित् से प्रहत निश्चेष्ट रह गए। यह सर्वेश्वरी का हाथ पकड़े हुए कनक मोटर से उतर रही थी। सबकी आँखों के संध्याकाश में जैसे सुंदर इंद्र-धनुष अंकित हो गया। सबने देखा, मूर्तिमती की किरण है। उस दिन घर से अपने मन के अनुसार सर्वेश्वरी उसे सजाकर लाई थी। घानी रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए, हाथों में सोने की, रोशनी से चमकती हुई चूड़ियाँ, गले में हीरे का हार, कानों में चंपा, रेशमी फ़ीते से बँधे, तरंगित खुले लंबे बाल, स्वस्थ सुंदर देह, कान तक खिंची, किसी की खोज-सी करती हुई बड़ी-बड़ी आँखें, काले रंग से कुछ स्याह कर तिरछाई हुई भौहें, पैरों में लेडी स्टाकिग और सुनहले रंग के जूते। लोग स्टेज की अभिनेत्री शकुंतला को मिस कनक के रूप में अपलक नेत्रों से देख रहे थे। लोगों के मनोभावों को समझकर सर्वेश्वरी देर कर रही थी। मोटर से सामान उतरवाने, ड्राइवर को मोटर लाने का वक्त बतलाने, नौकर को कुछ भूला हुआ सामान मकान से ले आने की आज्ञा देने में लगी रही। फिर धीरे-धीरे कनक का हाथ पकड़े हुए, अपने अर्दली के साथ, ग्रीन-रूम की तरफ चली गई। लोग जैसे स्वप्न देखकर जागे । फिर चहल-पहल मच