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अप्सरा १३७ हरपालसिंह लौटा। तारा से कहा-"इहाँ तो बड़ा खतरा है बहन ! सॅमलकर जाना । लोग लगे हैं। सबकी बातचीत सुनते हैं, और बड़ी जॉच हो रही है। राज्य के कई सिपाही भी हैं। राजकुमार की आँखों से ज्वाला निकलने लगी. पर सँभलकर रह गया । तारा घबराकर राजकुमार की तरफ देखने लगी! कनक भी तेज निगाह से राजकुमार को देख रही थी। स्टेशन की बत्तियों के प्रकाश में यूँघट के भीतर से उसकी चमकती हुई आँखें मलक रही थी। कुल मुखाकृति जाहिर हो रही थी। तारा ने एक साँस लेकर हरपालसिंह से कहा- भैया, छोटे बाबू को बुला तो लाओ।" स्टेशन बड़ा था। बग़ल में, डब्बे लगे थे। कई कर्मचारी थे। चंदन का काम हो गया था। वह हरपालसिंह को रास्ते में ही मिल गया। उनके पास आने पर तारा, शंकित दबे हुए स्वर से, स्टेशन के वायुमंडल का हाल, अवश्यंभावी विपत्ति से घबराती हुई, कहने लगी। चंदन थोड़ी देर सोचता रहा, फिर हरपालसिंह से कहा- "भैया, तुम चले जाओ, भेद अगर खुल गया, और तुम साथ रहे तो तुम्हारे लिये बहुत बुरा होगा।" . हरपालसिंह की भौहें तन गई, निगाह बदल गई। कहा- भैया हे-जान का खेयाल करते, तो आपका साथ न देते। आपकी इच्छा हाय, तो हिय लाठी- चंदन ने उतावली से रोक लिया। इधर-उधर देखकर, धीरे से कहा-“यह सब हमें मालूम है भैया, तुम्हारे कहने से पहले ही। पर अब ज्यादा बहस इस पर ठीक नहीं, तुम चले जाओ, हम श्राराम-कमरे में जाते हैं, गाड़ी आती ही है, और हमारे साथ तुम स्टेशन पर रहोगे, तो देखकर लोग शक कर सकते हैं।" ___ "हाँ, यह तो ठीक है।" बात हरपालसिंह को जॅच गई। उसे विदा करने के लिये तारा उठकर खड़ी हो गई। सामान पहले ही गाड़ी से उतारकर नीचे रख लिया गया था। हरपालसिंह ने बैल नह दिए, और ताय के चरण छुए 1 तारा खड़ी रही । कनक