अप्सरा __ हरपालसिंह गाड़ी ले आया। कोई पूछता, तो गाँव के स्टेशन गाड़ी ले जाने की बात कहता था। तारा ने भावजों को भेंट दी। माता तथा गाँव की त्रियों से मिली। नौकरों को इनाम दिया। फिर कनक को ऊपर से उतारकर थोड़े से प्रकाश में थोड़े ही शब्दों में उसका परिचय देकर गाड़ी पर बैठाल, सामान रखवा, स्वयं भी भगवान विश्वनाथ का स्मरण कर बैठ गई। राजकुमार और चंदन पैदल चलने लगे। गाड़ी चल दी। (२१) दूसरा स्टेशन वहाँ से ५-६ कोस पड़ता था। रात डेढ़-दो बजे के करीब गाड़ी पहुँची। तारा ने रास्ते से ही कनक को धुंघट से अच्छी तरह छिपा रक्खा था। स्टेशन के पास एक बराल गाड़ी खड़ी कर दी गई। चंदन टिकट खरीदने और आवश्यक बातें जानने के लिये स्टेशन चला गया। राजकुमार से वहीं रहने के लिये कह गया। गाड़ी रात चार के करीब आती थी। चंदन ने स्टेशन मास्टर से पूछा, तो मालूम हुआ कि सेकेंड क्लास डब्बा मिल सकता है। चंदन भाभी के पास लौटकर समझाने लगा कि फर्स्ट क्लास टिकट खरीदने की अपेक्षा उसके विचार से एक सेकेंड-क्लास छोटा डब्बा रिज़र्व करा लेने से सुविधा ज्यादा होगी, दूसरे कीमत में भी कमी रहेगी। तारा सहमत हो गई। चंदन ने १००) तारा से और ले लिए। ग्रस्ते-भर कनक के संबंध में कोई बातचीत नहीं हुई। चंदन ने सबको सिखला दिया था कि कोई इस विषय पर किसी प्रकार का जिक्र न छेड़े। हरपालसिंह के आदमी स्टेशन से दूर उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। चंदन सोच रहा था, त्रियों को वेटिंग रूम में ले जाकर रक्खे या गाड़ी श्राने पर चढ़ावे। हरपालसिंह फुरसत पा टहलता हुआ स्टेशन की सरफ चला गया। चंदन डब्बा रिजर्व कराने लगा। राजकुमार को तारा ने अपने पास बैठा लिया। कुछ देर बाद शंका.से अगल-बाल देख-वाख, सीना तानता हुआ
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