अप्सरा १२३ "रहने भी दो, मैं नहीं नहाऊँगा।" राजकुमार लेट रहा। एक बराल चंदन भी लेट गया-'मैं तो प्रातः स्नान कर चुका हूँ।" नीचे हरपालसिंह खड़ा था । मुन्नी दीदी दीदी पुकारती हुई ऊपर चढ़ गई। कमरे से निकलकर तारा ने हरपालसिंह को ऊपर बुलाया। चंदन और राजकुमार उठकर बैठ गए ! उसी पलँग पर तारा ने हरपालसिंह को भी बैठाया। हरपालसिंह चंदन और राजकुमार को पहचानता था। "कहिए बाबू, कल आप बच गए।" रामकुमार से कहता और शारे करता हुआ बैठ गया। फिर राजकुमार की दाहनी बाँह पकड़- कर मुस्किराते हुए कहा..."बड़े कस हैं।" राजकुमार बैठा रहा । तारा स्नेह की दृष्टि से राजकुमार को देख रही थी, जैसे उस दृष्टि से कह रही हो, आपकी बातें मालूम हो गई। दृष्टि का कौतुक बतला रहा था, तुम्हारा अपराध है। तारा का मौन फैसला समझकर चंदन चुपचाप मुस्किय रहा था। रात की खबर अब तक तीन कोस से ज्यादा फासले सक फैल चुकी थी। हरपालसिंह को भी खबर मिली थी। चंदन के भग पाने का उसने निश्चय कर लिया था। पर बाईजी के भगाने का कारण वह नहीं समझ सका। कमरे में इधर-उधर नजर दौड़ाई, पर बाईजी को न देखकर वह कुछ व्यप्र-सा हो रहा था। जैसी व्यग्रता किसी सत्य की श्रृंखला न मिलने पर होती है। ____ इसी समय तारा ने धीमे स्वर से कहा-"भैया, तुम सब हाल जानते ही हो, बल्कि सारी कामयावी तुम्हीं से हुई, अब थोड़ा-सा सहारा और कर दो, तो खेवा पार हो जाय।" हरपालसिंह ने फटाफट तंबाकू माड़कर अंतर्दृष्टि होते हुए फाँककर जीम से नीचे के होंठ में दबाते हुए सीना तानकर सर के साथ बंद पलकें एक तरफ मरोड़ते हुए कहा हूँ--" तंबाकू की माड़ से चंदन को छींक आ गई। किसी को छींक हे
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