११८ अप्सरा ___ तभी तो इतनी दूर तक पहुँचे हैं।" ___ राजकुमार पलंग के पास गया। चादर रेशमी और मोटी थी, मुंह देख नहीं पड़ता था। धीरे से उठाने लगा। तारा खड़ी हँस रही थी। खोलकर देखा, विस्मय से फिर चादर उढ़ाने लगा । कनक की ऑखे खुल गई । चादर उढ़ाते हुए राजकुमार को देखा, उठकर बैठ गई। देखा, सामने तारा हँस रही थी। लज्जा से उठकर खड़ी हो गई। फिर तारा के पास चली गई । मुख उसी तरह खुला रक्खा। वार्तालाप तथा हँसी-मजाक की ध्वनि से चंदन की नींद उखड़ गई। उठकर देखा, तो सब लोग उठे हुए थे। राजकुमार ने बड़े उत्साह से बाहों में भरकर उसे उठाकर खड़ा कर दिया। .. ____ तारा और कनक दोनो को देख रही थीं। दोनो एक ही-से थे। राजकुमार कुछ बड़ा था। शरीर भी कुछ भरा हुआ । लोटे में जल रखा था । राजकुमार ने चंदन को मुंह धोने के लिये दिया। खुद भी उसी से ढालकर मुंह धोते हुए पूछा-"कल जब मैं आया, तब लोगों से मालूम हुआ कि तुम आए हो, पर कहाँ हो, क्या बात है, बहूजी से बहुत पूछा, पर वह टाल गई।" __ "फिर बतलाऊँगा । अभी समय नहीं । बहुत-सी बातें हैं। अंदाजा लगा लो । मैं न जाता, तो इनकी बड़ी संकटमय स्थिति थी, उन लोगों के हाथ से इनकी रक्षा न होती!" ___हाँ, कुछ-कुछ समझ में आ रहा है।" "देखो, हम लोगों को श्राज ही चलने के लिये तैयार हो जाना चाहिए, ऐसी सावधानी से कि पकड़ में न आएँ।" "क्यों " "तुम्हें गिरफ्तार करने का पहले ही हुक्म था, और तुम्हारी इन्होने आज्ञा निकाली थी। उसी पर मैं गिरफ्तार हुआ. तुम्हें बचाने के लिये, क्योंकि तुम सब जगहों से परिचित नहीं थे। फिर जब पेश हुआ, तब इनके दुबारा गाने का प्रकरण चल रहा था, बँगले में, खास महफिल थी।" चंदन ने हाथ पोंछते हुए कहा ।
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