१५. असर थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी राह मिली । चंदन उससे होकर चला। युवती कनक को लेकर दूसरी से चली। प्रथम ऊपा का प्रकाश कुछ-कुछ फैलने लगा था। उसो समय ताय कनक को लेकर पिता के मकान पहुँची, और अपने कमरे में, जहाँ राजकुमार सो रहा था, ले जाकर, दरवाजा बंद कर लिया। कुछ देर में चंदन भो आ गया । कनक थक गई थी। युवती ने पहले राजकुमार के पलंग पर सोने के लिये इंगित किया। कनक को लजित खड़ी देख बाल के दूसरे पलँग पर सस्नेह बाँह पकड़ बैठा दिया, और कहा-"भायम करो, वड़ी तकलीफ मिली" कनक के मुरमाए हुए अधर खिल गए। चंदन ने पेशवाज सुखाने के लिये युवती को दिया । उसने लेकर कहा-"देखो, वहाँ चलकर इसका अग्नि-संस्कार करना है।" चंदन थक रहा था। राजकुमार की बग़ल में लेट गया। युवती सबकी देख-रेख में रही। धीरे-धीरे चंदन भी सो गया। कनक कुछ देर तक पड़ी सोचती रही । मा की याद आई। कहीं ऐसा न हो कि उसकी खोज में उसी वक, स्टेशन मोटर दौड़ाई गई हो, और तब तक गाड़ी न आई हो, वह पकड़ ली गई हो। समय का अंदाजा लगाया । गाड़ी साढ़े तीन बजे रात को आती है। चढ़ जाना संभव है। फिर राजकुमार की बातें सोचती कि न-जाने यह सब इनके विचार में क्या भाव पैदा करे । कभी चंदन की और कभी तारा की चातें सोचती, ये लोग कैसे सहृदय हैं ! चंदन और राजकुमार में कितना प्रेम ! तारा उसे कितना चाहती है ! इस प्रकार, उसे नही मालुम, उसकी इस सुख-कल्पना के बीच कब पलकों के दल मुद गए। ___ कुछ दिन चढ़ थाने पर राजकुमार की आँखों ने एक बार चिंता के जाल के भीतर से बाहर प्रकाश के प्रति देखा। चंदन की याद आई। उठकर बैठ गया 'बहूजी झरोखे के पास एक बाजू पकड़े हुए बाहर
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