अप्सरा ११५ तारा ने कहा-"हाँ, एक बात याद आई, जरा ठहर जाओ, मैं भी चलती हूँ, मेरे साथ आएगी, तुम अलग हो जाना, जरा कड़े और छड़े निकाल । तारा का दिया हुआ कुल सामान चंदन ने लपेटकर ले लिया। फिर आगे-आगे ताय को लेकर जंगल की तरफ चला। कनक प्रतीक्षा कर रही थी । शीघ्र ही दोनो कनक के पास पहुँच गए । कनक को देखकर तारा से न रहा गया। "बहन, ईश्वर की इच्छा से तुम राक्षसों के हाथ से बच गई।" कहकर ताय ने कनक का गले से लगा लिया। हृदय में जैसी सहानुभूति का सुख कनक को मिल रहा था, ऐसा उसे आज ओवन में नया ही मिला था। सो के लिये स्त्री की सहानु- भूति कितनी प्रखर और कितनी सुखद होती है, इसका आज ही उसे अनुभव हुथा। तारा ने साड़ी देकर कहा-"यह सब खोलकर इसे पहन लो कनक ने गीले वल उतार दिए । तारा ने चंदन से कहा-"छोटे साहक, ये कड़े पहना दो, देखें, कलाई में कितनी ताकत है।" चंदन ने कड़े डालकर दोनो हाथ घुटनों के बीच रखकर, जोर लगाकर पहना दिए, फिर छड़े भी। युवती ने चंदन की इस ताकत के लिये तारीफ की, फिर कनक से घट्टर ओढ़कर साथ चलने के लिये कहा । कनक चदर ओढ़ने लगी, तो युवती ने कहा- नहीं, इस तरह नहीं, इस तरह ।” कनक को चद्दर श्रोढ़ा दी। आगे-आगे तारा, पीछे-पीछे कनक चली। चंदन ने कनक के कपड़े पाँध लिए और दूसरी राह के मिलने तक साथ-साथ चला। तारा चुटकियाँ लेती हुई बोली-छोटे साहब, इस वक आप क्य ___ कनक हँसी । चंदन ने कहा-"एक दर्जा महावीर से बढ़ गया केवल नंबर देने ही नहीं गया, सीता को भी जीव लाया
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