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अप्सरा "भैया, जरा ठहर जाओ, सुन लो।" "अब माफ कीजिए, इतना बहुत हुआ।" एक आदमी आता हुआ देख पड़ा । सर्वेश्वरी रुक गई । भय हुआ, बुला न सकी । राजकुमार पेड़ों के अँधेरे में अवश्य हो गया। _ 'कुँवर साहब ने महफिल के लिये जल्द बुलाया है। आदमी ने कहा। "अच्छा। सर्वेश्वरी की आवाज क्षीण थी। "आप लोगों ने खाना न खाया हो, तो जल्दी कीजिए। सर्वेश्वरी डेरे की तरफ चली। आदमी और और तवायों को सूचना दे रहा था। "क्या होगा अम्मा ?" कनक ने त्रस्त निगाह से देखते हुए पूछा। "जो भाग्य में होगा, हो लेगा तुमसे भी नहीं बना।" कनक सर झुकाए खड़ी रही। और और तवाय भोजन-पान में लगी हुई थीं। सर्वेश्वरी थोड़ा-सा खाना लेकर आई, और कनक से खा लेने के लिये कहा । स्वयं भी थोड़ा-सा जल-पान कर तैयार होने लगी। राजकुमार बाहर एक रास्ते पर कुछ देर खड़ा सोचता रहा । दिल को सख्त चोट लगी थी। बहू से नाराज था। सोच रहा था, चलके खूब फटकारूँगा । रात एक पहर बीत चुकी थी, भूख भी लग रही थी। बहू के मकान की राह से चलने लगा। पर दिल पीछे खींच रहा था, तरह-तरह से प्रारज-मिन्नत कर रहा था--"बहुत दूर चलना है ! बहू का मकान वहाँ से मील ही भर के फासले पर था-"अब वहाँ खाना-पीना हो गया होगा। सब लोग सो गए होंगे।" राजकुमार को दिल की यह तजवीज पसंद थी। वह रास्ते पर एक पुल मिला, उस पर बैठकर फिर सोचने लगा । कनक उसके शरीर में प्राणों की ज्योति की तरह समा गई थी। पर बाहर से वह बराबर उससे लड़ता रहा। कनक स्टेज पर नाचेगी, गाएगी, दूसरों को खुश करेगी, खुद भी