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पराढ सिंहावलोकन वयों करू विगतावलोकन ? है अतीत विषादमय; तो भी करूं क्यों अश्रु-मोचन ? क्यों करू विगतावलोकन ? १ पण्ड-ऐसे बैठ कर देखा किये चुपचाप बादल और बस सोचा किये उन गत दिनों की बात बेकल; है यही लक्षण कि मानव चला असमर्थ, पागल मैं नपुंसक क्यों बनूं? क्यों आज छलकें व्यर्थ लोचन ? क्यों करूं विगतावलोकन ! २ मानता हूँ : प्राण-मन्थन-कारिणी हैं विगत घड़ियाँ किन्तु बन्धन-शील हैं गत शृङ्खला की कठिन कड़ियाँ क्यों न भावी काल-माला की गिनूं मैं आज लड़ियाँ ? है निपट निष्कम्ममय यह व्यर्थ का सिंहावलोकन ? क्यों करूं विगतावलोकन ? अड़सठ