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अपलक तुम्हें गोद में ले उमड़ेगा, मेरा पारावार; स्वप्न मम बन आये साकार । ४ एक कल्पना थी धुंधली-सी, फिर वह बनी एक पुतली-सी, पर अब ? अब तो सुन ली मैंने नूपुर की मंकार; स्वप्न मम बन आये साकार । ५ जलद-यान से उतरे साजन, रहनह मुसकाते-से क्षण-क्षण, मैं अवाक् , वे मौन खड़े थे, नयनों में भर प्यार; खप्न मम बन आये साकार। ६ जब द्वारे आ गये, सलौने, खिले कुटी के कोने-कोने; हुलसे प्राण, कँपा हिय, बह-बह आई लोचन-धार; स्वप्न मम बन आये साकार । श्री गणेश कुटीर, प्रताप, कानपुर मध्याह्व, दिना २०-४-३६ पैंतालीस