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मेरे चाँद ओ , मेरे पुलक प्रान, आओ, ढिग बैठ रहो, सुन लो यह विकल गान, ओ, मेरे पुलक प्रान ! ? जीवन-धन-अंधकार; आए तुम प्रथम किरन, आकुल इन नयनों के, तुम मेरे चाँद सजन, नेह-मगन यौवन की, तुम मम-मन-हरन-लगन, परम-अगम बने रहो, ओ मेरे भासमान, तुम, मेरे पुलक प्रान। २ इतना परपंची हूँ : फैलाया जगत-जाल, तव अर्चन-हित न गुंथ पाया हूँ गीत-माल यों ही एकाध लड़ी गूंथी है लाल-लाल- उलझा लो इसको निज श्रवणों में तुम, सुजान, ओ, मेरे पुलक ग्रान! बयालीस