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कुहू की बात चार दिन की चाँदनी थी, फिर अँधेरी रात है अब. फिर वही दिग्भ्रम, वही काली कुहू की बात है अब । ? चाँदनी मेरे जगत की प्रान्ति की है एक माया, रश्मि-रेखा तो अथिर है, नित्य है धम तिमिर छाया, ज्योति छिटकी थी कभी, अब तो अँधेरा पाख पाया; रात है मेरी, सजनि, इस भाल में नव प्रात है कब ? फिर अँधेरी रात है अब। २ इस असीमाकाश में भी लहरता है तिमिर-सागर, कौन कहता है : गगन का वक्ष है अह-निशि उजागर ? ज्योति आती है क्षणिक उद्दीप्त करने तिमिर का घर, अन्यथा तो अन्धतम का ही यहाँ उत्पात है सब फिर अँधेरी रात है अब। मैं अँधेरे देश का हूँ चिर प्रबासी, सतत चिन्तित, हृदय विभ्रम-जनित श्राकुल अत्तु से मम पन्थ सिञ्चित बनीस