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बिन्दु सिन्धु छोड़ चली एक बिन्दु, इन्दु-मथित सिन्धु-लहर छोड़ चली, लघु ससीम औ' असीम बीच लगी होड़ भली । ? निज विराट रूप त्याग, बिन्दु बनी तन्वङ्गी, अपरिमेय, अमित माप राशि हुई अण्वङ्गी; अगमा गति गम्य हुई अनिलानल-रेंग-रङ्गी; नाना विधि रूप धरे विचर रही गली-नाली, बिन्दु-सिन्धु छोड़ चली। २ हर-हर करते गतियुत द्रुत मारुत रथारूढ़,- अम्बर में विचरण की हिय में भर व्यथा गूढ़,--- लेने दिक्-काल-थाह निकली यह बिन्दु मूढ़ निज असीम, अगम, गहन गृह से मुंह मोड़ चली; बिन्दु, सिन्धु छोड़ चली। क्षण में वह बाष्प वनी, क्षण में वह श्रोस-बिन्दु, क्षण में धन-धारि-उपल, फिर, चातक-तोष-बिन्दु