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थकित सायुज्य याचा फिर वही क्या न सुनोगे विनय हमारी ? उड़ गए तुम निमिष भर में तेरा मेरा नाता क्या है ? परढ सिंहावलोकन सखे! हम हैं मस्त फकीर प्रिंय, त्वम्-मय कर दो मम तन-मन प्राण, तुम्हारे कर के कंकण सजन, करो सन्तत रस-वर्षण तुम न आना अतिथि बनकर मेरे भौन लगी आग आओ, प्रिय हृदय लगो मेरा क्या काल कलान ? बढ़ रहा है भार मेरा आ जाओ, प्रिय, साकार बनो विस्मरण सखि, वन-वन घन गरजे तिमिर-भार अस्तित्व-नाव नयनन नीर भरे निराशा क्यों हिय मथित करे ? घन-गर्जन-क्षण अपलक चख चमक भरो १०० १०५ १०७